डॉ.संध्या गुप्ता के कुछ महीनों से बीमार रहने की खबर मिली थी। उन्हें कैंसर हुआ था। लेकिन आज चोखेर बाली ब्लॉग की पोस्ट्स देख रही थी तो उनके एक ड्राफ्ट पोस्ट पर नज़र पड़ी, जो 4 अगस्त को उन्होंने सेव की थी इस तरह थी-
मित्रों, एकाएक मेरा विलगाव आपलोगों को नागवार लग रहा है, किन्तु शायद आपको यह पता नहीं है की मैं पिछले कई महीनो से जीवन के लिए मृत्यु से जूझ रही हूँ । अचानक जीभ में गंभीर संक्रमण हो जाने के कारन यह स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जीवन का चिराग जलता रहा तो फिर खिलने - मिलने का क्रम जारी रहेगा। बहरहाल, सबकी खुशियों के लिए प्रार्थना।
मुझे पता था कि पिछले कुछ महीनों से वे बीमार हैं, कैंसर से जूझ रही हैं। इस सिलसिले में मैंने उन्हें ब्लॉग के जरिए संदेश भेजा, पर जबाव अभी तक नहीं आया। जिज्ञासावश उनके नाम की तलाश की गूगल पर, तो जागरण याहू पर यह लिंक मिला जिसमें खबर थी कि- "नहीं रही डॉ.संध्या गुप्ता, शोक में डूबा विश्वविद्यालय" । यह 9 नवंबर की खबर थी।
दो साल पहले ही मेरी उनसे दिल्ली में मुलाकात हुई थी, भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार समारोह में। उनसे दोबारा बात न कर पाने का अफसोस रहेगा।
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3 comments:
संध्याजी का लोकप्रिय, ढेरों टिप्पणियां नियमित बटोरने वाला ब्लॉग इधर है- http://guptasandhya.blogspot.com/ इसका उप-शीर्षक है- "तरक्की के इस जमाने में एक जंगली बेल की मुहिम"
उनकी एक कविता-
किवाड़
इस भारी से उँचे किवाड़ को देखती हूँ
अक्सर
इसके उँचे चौखट से उलझ कर सम्भलती हूँ
कई बार
बचपन में इसकी साँकलें कहती थीं
- एड़ियाँ उठा कर मुझे छुओ तो!
अब यहाँ से झुक कर निकलती हूँ
और किवाड़ के ऊपर फ्रेम में जड़े पिता
बाहर की दुनिया में सम्भल कर
मेरा जाना देखते हैं!
मेरी विनम्र श्रदांजलि..
विनम्र श्रदांजलि..
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