पता नहीं क्यों कल रात संध्या जी के जाने की खबर पाने से बाद से बहुत व्यथित हूं। लगातार उनके बारे में सोच रही हूं। सुबह उठकर भी दिमाग पर वही छाई हुई हैं।
कारण- बहुत मुश्किल है ढूंढ पाना। मन-दिमाग में उनकी जो छवि बनी हुई है, उससे वे बेहद सरल लेकिन प्रभावशाली लगती हैं। दो साल पहले की उस छोटी सी मुलाकात में उनको जितना जाना, उससे ज्यादा उनके ब्लॉग से जाना। अपने प्रोफाइल चित्र में उनके व्यक्तित्व का एक छोटा हिस्सा ही उभर पाता है।
मेरे डिस्टर्ब हो जाने का एक और, ज्यादा बड़ा कारण है कि वे मेरी 'कैंसर बड्डी' हैं। नहीं, उनसे इस विषय पर कभी कोई बात नहीं हुई, लेकिन जब भी कोई कैंसर से हारता है, मुझे लगता है, इसमें मेरी भी थोड़ी हार है, और यह तथ्य मुझे हर बार थोड़ा परेशान भी जाता है। क्यों मैं कुछ नहीं कर पाई? क्या मैं कुछ कर पाती तो स्थितियां बदलतीं? क्या मेरे बात करने भर से भी कोई, सूत भर भी अंतर आ पाता? संभावना तो हमेशा रहती है, तो मैंने उस मोर्चे पर कसर छोड़ ही दी!
आप सोचेंगे, ये कहां की महारथी हैं! बड़े-बड़े डॉक्टर जहां हार गए, वहां इस चींटी की क्या औकात कि कुछ बदलाव लाने का सोचे? लेकिन, मुझे लगता है कि ज्यादातर कैंसर मरीज एक संबल ढूंढते हैं, अपनी उत्तरजीविता की उम्मीद को बनाए रखने के लिए। और कोई कैंसर विजेता उन्हें दिलासा दे पाए तो यह उनमें बड़ी राहत भर देता है। यह मानसिक आश्वासन बहुत काम का होता है, शरीर के लिए और परेशान थके मन के लिए भी। मेरा अपना जबर्दस्त अनुभव रहा है।
इसके अलावा, ज्यादातर हिंदुस्तानी एक समय के बाद अस्पताली सहयोग लेने में संकोच करने लगते हैं और फिर होमियो-आयुर्वेद, वैद्य-हकीम से उम्मीद करते हैं कि वह कुछ कर पाएंगे। निराश होने के समय में भी एलोपेथी में ज्यादा संभावनाएँ हैं- यह तो तय है। कुछ लोगों का कैंसर जरूर खास तरह का होता है जो तेजी से फैलता है और किसी को ज्यादा इंटरवेंशन का मौका ही नहीं मिल पाता। लेकिन ज्यादातर मामलों में फिर भी समय होता है, जिंदगी को थोड़ा लंबा, आसान कर पाने का। जरूर संध्याजी के लिए और संध्याजी ने हर कुछ किया होगा, जिससे उनके जीते रहने की संभावना बढ़े। पर आखिर में सब पीछे छूट गया और संध्याजी इन सबसे आगे निकल गईं।
बस, अपने मन की लिख रही हूं और एक बात और-
कैंसर खतरनाक बीमारी जरूर है, पर अगर हम सतर्क रहें, अपने शरीर को और इस बीमारी को जानें-पहचानें और जल्द और पूरा इलाज कैंसर अस्पताल में करवाएं तो जिंदगी बेहतर और लंबी हो सकती है। जीने की संभावना को कम करना आत्महत्या के समान ही है।
संध्याजी को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ उनकी एक कविता, उन्हीं के ब्लॉग से-
प्रारम्भ में लौटने की इच्छा से भरी हूं!
मैं उसके रक्त को छूना चाहती हूं
जिसने इतने सुन्दर चित्र बनाये
उस रंगरेज के रंगों में घुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा
उस कागज के इतिहास में लौटने की इच्छा से
भरी हूं
जिस पर
इतनी सुन्दर इबारत और कवितायें हैं
और जिस पर हत्यारों ने इकरारनामा लिखवाया
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं
अभी स्वप्न से जाग कर उठी हूँ
अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है
यह शरीर !
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14 comments:
चकित , तिरोहित , व्यथित - यही अवस्था है पढकर
अंतस अत्यंत व्यथित है
संध्या जी को विनम्र श्रद्धांजलि
व्यथित मन से संध्या जी को श्रद्धांजलि।
बहुत ही दुखद खबर..संध्या जी को विनम्र श्रद्धांजलि
कैंसर से लड़ने के लिए सपोर्ट ग्रुप की बहुत जरूरत है...जहाँ कैंसर को हरा चुके लोग अपने अनुभव साझा करें...कैंसर से जूझते लोगों के लिए यह सबसे बड़ा संबल होता है.
पता नहीं..भारत के अस्पतालों में इस तरह के ग्रुप हैं या नहीं..पर विदेशों में इस तरह के कई ग्रुप सक्रिय हैं...और डॉक्टर ही अक्सर रेकमेंड कर देते हैं...दूसरों के अनुभव सुनकर जीने की प्रेरणा और ताकत मिलती है.
विनम्र श्रद्धांजलि...
जय हिंद...
नमन
विनम्र श्रद्धांजलि
विनम्र श्रधांजलि
Amen!
विनम्र श्रद्धांजलि
ओह ! संध्या जी में गजब की प्रतिभा थी। उनकी कविताएँ मुझे खास तौर पर पसंद हैं। ... लेकिन उनकी तसवीर में हमेशा एक उदासी घुली रहती थी।
bahut der se pata laga behad afsos hai mujhe.... aur sundar man ko viswas nahi ho raha hai koi hamse door chala gaya..
ishawar unke ghar pariwar ko yah dukh sahne ki aseem shakti pradan karye yahi prarthana hai...
...dukh ke kshanon mein bhi aapne shradanjali swaroop itna likha iske liye aapka aabhar...
bahut der se pata laga behad afsos hai mujhe.... aur sundar man ko viswas nahi ho raha hai koi hamse door chala gaya..
ishawar unke ghar pariwar ko yah dukh sahne ki aseem shakti pradan karye yahi prarthana hai...
...dukh ke kshanon mein bhi aapne shradanjali swaroop itna likha iske liye aapka aabhar...
य़ह समाचार बडा ही धक्कादायक है । संध्याजी से मै ब्लॉग के माध्यम से ही परिचित थी । उनकी कविताएं बहुत अचछी लगती थीं । इतनी कम उम्र में उनका यूँ छोड कर चला जाना बेहद दुखःद है । सादर श्रध्दांजली ।
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