इस साल की शुरुआत में ही कुछ ऐसा हुआ कि आंध्रप्रदेश के पुलिस महानिदेशक दिनेश रेड्डी ने कहा कि बलात्कार जैसी घटनाओं का कारण यह है कि महिलाएं ‘फैशनेबल और कम/हल्के(flimsy)’ कपड़े पहनती हैं।
इसकी प्रतिक्रिया में, बल्कि उनके बचाव में कर्नाटक के महिला और बाल विकास मंत्री सी सी पाटिल ने कहा था कि ‘निजी तौर पर मैं महिलाओं के उत्तेजक कपड़े पहनने के पक्ष में नहीं हैं।( महिलाओं को शालीन कपड़े पहनने चाहिए और उन्हें पता होना चाहिए कि कितनी चमड़ी दिखानी है।‘ यानी औरतों के कपड़ों में समस्या (उनकी नजरों के मुताबिक- कमी) होने पर पुरुष उत्तेजित हो जाते हैं और महिलाओं के साथ दुराचार जैसे अपराध करते हैं। अगर महिलाएँ ‘शालीन कपड़े पहनें’ तो हमारे देश के पुरुष साधु हो जाएंगे।
वे यह भी कहने से नहीं चूके कि “सदियों से हमने महिलाओं को सम्मानित स्थान और शालीन दर्जा दिया है। हम उनकी कई तरह से पूजा करते हैं। उनके सम्मान में ही कई नदियों के नाम महिलाओं के नाम पर हैं।”[sic]
ये ही सी सी पाटिल पिछले दिनों विधानसभा में,सदन में कार्रवाई के दौरान अपने मोबाइल पर पोर्न वीडियो देखते कैमरे पर पकड़े गए। पार्टी पर दबाव के कारण उनकी छुट्टी करनी पड़ी, लेकिन उनके बचाव में कई नेता कह रहे हैं कि वे ‘देख ही तो रहे थे,कर थोड़े ही रहे थे।’
यह किसी एक राजनीतिक पार्टी की बात नहीं है। कांग्रेसी शीला दीक्षित भी, सौम्या विश्वनाथन हत्या के मामले में कह चुकी हैं कि महिलाओं को इतनी रात गए बाहर निकलने की जरूरत क्या है। क्यों नहीं वे आराम से बंद दरवाजों के भीतर सुरक्षित रहतीं।
इसी किसी समय में जुझारू फोटो पत्रकार सर्वेश ने कहा था, जो मुझे सौ फीसदी सही लगता है कि- किसी भी वक्त घर से निकलना मेरा मानवाधिकार है।
साथ ही, मैं यह जोड़ूंगी कि साड़ी,जो हमारे देश में सबसे शालीन वस्त्र माना जाता है, सबसे ज्यादा शरीर-दिखाऊ 'अभद्र' कपड़ा है। साथ ही यह कहने से नहीं रुकूंगी कि रेप जैसी घटना को रोकने की कोशिश में यह रुकावट है। यह इस अर्थ में कि अगर ऐसा कोई मौका किसी साड़ी-धारी महिला के साथ आता है जब उसे बचकर भागना है, तो साड़ी उसकी फुर्ती में बाधा बनती है। कोई कह सकता है कि जिसे आदत है, उसे साड़ी में भी भाग-दौड़ करने में कोई दिक्कत नहीं होती। पर सोचकर देखिए, साड़ी की परतों और कम घेरे में पैर कितना फैल सकेगा? जबकि सलवार,पैंट आदि में ऐसी कोई असुविधा नहीं है।
आपके विचारों, टिप्पणियों, लानत-मलामत का इंतजार है।
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10 comments:
जिन बच्चियों की उम्र सिर्फ कुछ महीनों की होती है और वे ऐसी वीभत्स घटनाओं का शिकार बनती तो क्या उनके भी परिधान ही खराब होते है..... ? इनसे पूछे कोई .....दोगली मानसिकता है और बस और कुछ नहीं.....
अनुराधा जी,
आपकी बात से सहमत हूँ.कपड़े नहीं बल्कि स्त्री विरोधी मानसिकता ही बलात्कार और छेडछाड जैसे अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं.कई आदिवासी समाजों में महिलाएँ नाम मात्र के ही कपडे पहनती हैं लेकिन वहाँ ऐसे अपराधों के बारे में कभी नहीं सुना जाता.
लेकिन आपके द्वारा साडी को अश्लील बताना बडा अजीब लग रहा हैं.इससे तो फिर कपडों को लेकर फिर वही व्यर्थ बहस शुरु हो जाएगी.हम कपडों को इतना महत्तव दे ही क्यूँ?जिसे जो पसंद हो पहनें.
और अगर आपको साडी 'बदन उघाडू' होने की वजह से अश्लील लग सकती हैं तो दूसरों को कोई और परिधान बदन उघाडू या पारदर्शी लग सकता हैं और इसी कारण अश्लील भी.फिर उनसे ही परेशानी क्यों?
राजन जी, मैंने साड़ी की बात एकसंदर्भ में कही थी, कि अगरकोई इसे शालीन आदि समझता है तो। फिर भी,ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। आखिर मैं भी इस सही-गलत की मानसिकता से पूरी तरह दूरतो नहीं हूं। कहीं-न-कहीं वह सब भी इसी दिमाग में होता है, जिसका विरोध हमारी चेतना करती है।
मेरा तो मानना है कि महिलाओं की दयनीय स्थिति की जिम्मेदार राजनीति है। अफसोस उस समय होता है जब शीला दीक्षित महिला होते हुये भी महिला विरोधी बयान देतीं है।
इस तरह की घटनायें तभी रुक सकती हैं जब स्त्री को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अधिकार पुरुषों के बराबर मिलें।
कृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)
कोशिश होती रहनी चाहिए, बदलाव धीरे-धीरे ही आता है...
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..की-बोर्ड वाली औरतें।
कुत्सित मानसिकता है. पर्वर्शन. कुछ मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग भी होते हैं जिनके लिए थोडा भी बहुत होता है.
सुब्रमनियन जी से सहमत । फिर भी शालीन कपडे पहनने से सुरक्षा तो होती ही है । हम अपने पैसे बी खुले आम सबको दिखाते नही पिरते ता कि चोरी ना हो जायें ।
जो लड़कियों के छोटे कपड़ों को रेप या छेड़छाड़ के लिये जिम्मेदार बताते हैं, उनसे एक ही सवाल है...
विज्ञान के अनुसार हम औरतों में सेक्स इच्छा पुरुषों के मुकाबले चार गुना ज्यादा होती है, तो कोई औरत किसी अर्द्धनग्न पुरुष को देखकर उसका रेप करने तो नहीं दौड़ पड़ती है... क्यों
ज़्ररूरत सोच बदलने की है न कि कपड़ा. कौन सा परिधान शालीन है कौन सा भड़काऊ या अपेक्षाकृत कौन सा कैसा है... परिधान पर बात करना मुद्दे को दूसरी दिशा मे मोड़ देना है.बात मानसिकता से हट कर कपड़ों पर चली जाती है और "... यह कपड़ा शालीन, वह कपड़ा बलात्कार को न्योता देता है..." पर बहस शुरू हो जाती है. लड़कियाँ देर रात बाहर निकलें/ न निकलें , डिस्को, पब आदि मे जायें / न जायें यह सब भी भटकाने वाली और इसी आशय से की जाने वाली बातें हैं.जब तक हमारी (पुरुष व नारी- दोनों की ) सोच नही बदलती और सामाजिक व प्रशासनिक व्यवस्था मे सुधार / कड़ाई नही होती तब तक कोई भी कपड़ा पहने या दिन भर घर मे रहें... वैसी घटनाएं होती रहेंगी. यह समाज और कानून है जो बलात्कृता को और बेईज्जत करता है, बलात्कार का निदान बस कुछ आर्थिक दंड या पीड़ित की उसी से शादी करवाने जैसे लीपा पोती वाले काम करता है. बदलाव यहां अपेक्षित है न कि कपड़ों मे.
सहमत ! हमें इस साड़ी-मार्का मानसिकता से ऊपर उठना होगा । स्त्री को यौन-वस्तु मात्र के रूप में देखने वाले ‘विक्षिप्तों’ की पैदाइश रोकिये; तभी बलात्कार रुकेंगे
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