पेशे से ज्वेलरी डिज़ायनर , जेमोलॉजिस्ट एवं अस्ट्रालजर परंतु ह्रदय से लेखिका स्वप्निल शुक्ल' 'स्वप्निल ज्वेल्स' नामक ब्लॉग पर सक्रिय हैं
विभिन्न पत्रिकाओं मे इनके लेख प्रकाशित हैं। गहने- दि आर्ट आफ वेअरिंग ज्वेलरी ' इनकी प्रथम प्रकाशित पुस्तक है.वे लिखती हैं : "'धूल तब तक स्तुत्य है जब तक पैरों तले दबी है , उड़ने लगे...... आँधी बन जाए ....तो आँख की किरकिरी है.....चोखेर बाली है ' .....ये चंद पंक्तियाँ जाने क्यों मुझे हर वक़्त अपनी ओर आकर्षित करती हैं और जो मुझे चोखेर बाली से नियमित रुप से जुड़े रहने का सबब हैं. चोखेर बाली को मैं पिछले एक वर्ष से पढ़ रही हूँ. चूंकि अभी कुछ समय पूर्व अपने खुद के ब्लॉग 'स्वप्निल ज्वेल्स' पर सक्रिय हुई हूँ तो 'चोखेर बाली' की फॉलोवर भी बन गई हूँ. चोखेर बाली मेरे लिये प्रेरणा का स्रोत है. इसका हर लेख मुझे ज्ञान के प्रकाश की ओर अग्रसर करता है व समाज के विभिन्न वर्गों को जागरुकता प्रदान करता है. अत: चोखेर बाली से मुझे विशेष लगाव है और ये मेरे ह्रदय के सबसे करीब है."आज स्वप्निल का ही एक लेख यहाँ पोस्ट
कर रही हूँ :-
आज शायद ही कोई ऎसा क्षेत्र हो जिसमें महिलाओं ने अपना लोहा न मनवाया हो ,हम कार्पोरेट जगत की बात करें या राजनीति की या फिल्म जगत की ।यह भी सच है कि महिलायें हर चुनौतियों को स्वीकार कर अपने कार्यक्षेत्र व ज़िम्मेदारियों में सफलतापूर्वक अग्रसर हो रही हैं।लेकिन इसके बावजूद भी महिलाओं के सामने पुरुषों की अपेक्षा कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हैं।ये
उलझने घर के भीतर और कार्यक्षेत्र ,दोनो जगह अलग
अलग तरीके से सामने आती हैं।
शाम को जब अपना सारा कार्य संपूर्ण कर लड़की घर को आएगी तो बस पहला शब्द, "बेटी ! बहुत देर हो गई. कहाँ थी ? किसके साथ थी? मैंने तुम्हे कल उस इलाके में फलाना लड़के के साथ देखा था." वगैरह- वगैरह और सबसे बड़ी बात, इन प्रश्नों की झड़ी लगाने वाले लड़की के माँ - बाप नहीं बल्कि रिश्तेदार होंगे.आज भी समाज में कई ऐसे परिवार हैं जिसमें लोग लड़की की नौकरी लगते ही शादी के लिये दबाव बनाने लग् जाते हैं फिर लड़की ने अपने कैरियर और अपनी ज़िंदगी को किस तरह प्लान किया है, ये तो कोई सुनना भी नहीं चाह्ता. परिवार वालों के साथ-साथ लड़की के रिश्तेदार बस या तो आए दिन नये लड़कों का प्रस्ताव लेकर घर आ जाएंगे या तो हर वक़्त लड़की के बारे में जासूसी करते रहेंगे।भले ही महिला पढ़ी-लिखी है, कामकाजी है व अपने परिवार की पूरी श्रद्धा से ज़िम्मेदारियों का पालन कर रही हो , फिर भी उस पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाया जाता है। .आज भी कई परिवारों में घरेलू हिंसा जैसे गंभीर अपराध हो रहे हैं .
आज के समाज में ये एक कटु सत्य है कि ऐसे परिवार भी देखने को मिल जाते हैं जो लड़की की ज़िंदगी में हद से ज्यादा दखल अन्दाज़ी करने को ज़िम्मेदारी का नाम देते हैं. पर ये ज़िम्मेदारी स्वयं लड़की की होनी चाहिये कि यदि वो अपने पैरों पर खड़ी हुई है और अपने भविष्य को सँवार रही है तो वो खुद को एक बेह्तर इंसान बनाने के साथ साथ समाज को एक खुशहाल परिवार ही भेंट दे रही है. क्योंकि एक लड़की ही आगे चलकर एक सफल पत्नी, माँ और अन्य रिश्तों से जुड़ती है व नए समाज की स्थापना करती है.
ऐसे में परिवार वालों की ये ज़िम्मेदारी होनी चाहिये की कामकाजी महिला चाहे शादीशुदा हो या कुँवारी लड़की उन्हे अपनी बेटी व बहु का सहयोग करना चाहिये न कि जरुरत से ज्यादा दखल देकर अपनी ही बहु - बेटी को मानसिक तनाव की ओर ढकेलना चाहिए . महिलाओं को स्वयं ही अपने पारिवारिक या आस-पास मौजूद उपद्रवी लोगों से संभंल कर रहना चाहिये .
प्रोफेशनल जगत में सेक्शुअल हैरसमेंट जैसे कई मुद्दे न सिर्फ एक स्त्री के मन मस्तिष्क को कुंठित बनाते हैं बल्कि अगर उसके दर्द को समझा न जाए तो यही घुटन उनके जीवन को अंधकार की ओर ले जाती है . ऐसी स्थिति में अपने साथ कार्य करने वाले कर्मचारियों व अपने बॉस के बीच प्रोफेशनल रिश्ता ही कायम रखें. अपनी पर्सनल व प्रोफेशनल लाइफ में अंतर बना कर रखें . यदि आपको ऐसा मह्सूस हो रहा है कि आपके बॉस या आफिस के किसी भी कर्मचारी की आप पर गलत निगाह है तो बेहतर होगा कि सख्त रवैया अपनायें . ऐसी स्थिति में आवाज़ उठाना कोई गलत बात नहीं . जरुरत पड़ने पर आस-पास की समाज सेवी संस्थाओं से सदैव संपर्क कायम रखें . आफिस के हर कार्य को लिखा पढ़ी में ही करें . लेटनाइट ड्यूटी की स्थिति में अपनी सतर्कता व सुरक्षा को प्राथमिकता दें और सावधानी बरतें . अपने वर्क प्रोफाइल के लिये मानसिक तौर पर स्पष्ट रहें . और यदि आपको लग रहा है कि आप का बॉस आप पर आपके वर्क प्रोफाइल के अलावा जरुरत से ज्यादा वर्क लोड बढ़ा रहा है तो इसका विरोध करें या स्पष्टीकरण माँगें.
यदि किसी तरह की फ्रस्ट्रेशन या मानसिक तनाव हो रहा है तो अपने प्रिय मित्र या परिवारिक सदस्य से खुलकर चर्चा करें . धैर्य व संयम कायम रखें . अपने खान पान पर विशेष ध्यान दें क्योंकि जब तक आप स्वस्थ नहीं होंगी तो आप अपने परिवार व कार्य को कैसे संभालेंगी ?
हम महिलाओं के ऊपर पुरुषों की अपेक्षा अधिक कार्य भार होता है. यदि कामकाजी महिलायें आफिस व घर दोनो ही संभालती हैं तो घरेलु महिलायें घर पर रह कर भी एक पुरुष से कई गुना ज्यादा कार्य संभालती हैं . परंतु समाज का कुछ वर्ग आज भी महिलाओं के मामले में पक्षपाती व ढीला रवैया अपनाता है तो ऐसी स्थितियाँ तनाव उत्पन्न करती हैं जो 'डिप्रेशन ' का रुप ले लेता है.
अपने पारिवारिक सदस्यों, आसपास के वातावरण, रिश्तेदारों की सोच व रवैये को समझें. कौन किस तरह आपके कार्य में विघ्न डाल रहा है, उसका तुरंत विरोध करें . याद रखें कि हमें हमारी बेहतर ज़िन्दगी के लिये स्वयं स्वावलंबी होना होगा. अपनी मर्यादा में रहते हुए अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग कर हम अपने पैरों पर खड़े होकर ही एक स्वस्थ समाज को स्थापित कर सकते हैं.