स्त्री का सोचना एकांत में
चैन की एक साँस
लेने के लिए स्त्री
अपने एकांत को बुलाती है।
एकांत को छूती है स्त्री
सम्वाद करती है उससे
जीती है
पीती है उसको चुपचाप
एक दिन
वह कुछ नही कहती अपने एकांत से
कोई भी कोशिश नही करती
दुख बाँटने की
बस,सोचती है।
वह सोचती है
एकांत में
नतीजे तक पहुँचने से पहले ही
खतरनाक घोषित कर दी जाती है।
भाषा मे छिप जाना स्त्री का
न जाने क्या सूझा
एक दिन स्त्री को
खेल खेल मे भागती हुई
भाषा मे समा गई
छिप कर बैठ गई।
उस दिन
तानाशाहों को
नीन्द नही आई रात भर
उस दिन
खेल न सके कविगण
अग्नि पिंड की मानिन्द
तपते शब्दों से
भाषा चुप रही सारी रात ।
रुद्रवीणा पर
कोई प्रचण्ड राग बजता रहा।
केवल बच्चे
निर्भीक
गलियों मे खेलते रहे।
युद्धरत आम आदमी
जुलाई -सितम्बर ,पृ.20
चैन की एक साँस
लेने के लिए स्त्री
अपने एकांत को बुलाती है।
एकांत को छूती है स्त्री
सम्वाद करती है उससे
जीती है
पीती है उसको चुपचाप
एक दिन
वह कुछ नही कहती अपने एकांत से
कोई भी कोशिश नही करती
दुख बाँटने की
बस,सोचती है।
वह सोचती है
एकांत में
नतीजे तक पहुँचने से पहले ही
खतरनाक घोषित कर दी जाती है।
भाषा मे छिप जाना स्त्री का
न जाने क्या सूझा
एक दिन स्त्री को
खेल खेल मे भागती हुई
भाषा मे समा गई
छिप कर बैठ गई।
उस दिन
तानाशाहों को
नीन्द नही आई रात भर
उस दिन
खेल न सके कविगण
अग्नि पिंड की मानिन्द
तपते शब्दों से
भाषा चुप रही सारी रात ।
रुद्रवीणा पर
कोई प्रचण्ड राग बजता रहा।
केवल बच्चे
निर्भीक
गलियों मे खेलते रहे।
युद्धरत आम आदमी
जुलाई -सितम्बर ,पृ.20
4 comments:
good poems...
जैसे स्त्री के अंतर्मन की उडान शब्दों में पढ़ना ....मारक कवितायेँ हैं !
सोनरूपा विशाल has left a new comment on your post "कात्यायनी की दो कविताएँ":
जैसे स्त्री के अंतर्मन की उडान शब्दों में पढ़ना ....मारक कवितायेँ हैं !
beautifully meaningful..!!
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