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अनुप्रिया के रेखांकन
स्त्री को सिर्फ बाहर ही नहीं अपने भीतर भी लड़ना पड़ता है- अनुप्रिया के रेखांकन
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22 comments:
सही बात है... स्त्री जब तक स्वयं को लेकर सहज नहीं होगी, वह ऐसे ही पुरुषों की बनाई भूलभुलैया में फंसी रहेगी।
बिलकुल सही बात है. हमारे समाज में औरतें कई बार अपने शरीर को लेकर इतनी असहज हो जाती हैं कि अपना आत्मविश्वास खो देती हैं.
लेकिन जहाँ तक मुँह ढकने और सीना दिखाने की मानसिकता का सवाल है, तो इसे मैं इस तरह भी देखती हूँ कि ऐसा भी पुरुषों ने अपने नेत्रों को सुख देने के लिए ही कर रखा होता है और ऐसा करके हम कहीं ना कहीं उन्ही की इच्छा की पूर्ति कर रहे होते हैं. मेरे विचार से इसे औरतों पर छोड़ देना चाहिए कि वो क्या पहनें और कैसे पहनें. अपने स्तनों को लेकर सहज होना हमें अपनी बच्चियों को किशोरावस्था से ही सिखाना होगा. उन्हें यह भी बताना होगा कि अगर 'छुपाना' पुरुषों के अहं को तुष्ट करता है, तो 'दिखाना' उनकी कुंठा को. इसलिए लड़कियाँ सहज रहें और दूसरों के कहें मुताबिक़ नहीं अपनी इच्छा से कपड़े पहनें.
ये बहुत हद तक हमारे अपने स्वभाव पर भी निर्भर करता है और इच्छा पर. हॉस्टल में मेरी कुछ सहेलियाँ अपने शरीर को लेकर बहुत सहज रहती थीं और उन्हें कैम्पस में जाने के लिए दुपट्टा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी, लेकिन मैं स्वभाव से संकोची हूँ और हमेशा दुपट्टा लेकर ही निकलती थी, शायद इसका कारण यह भी था कि उसके पहले मैं एकदम ढीली-ढाली टी-शर्ट और जींस पहनती थी, फिट कपड़े पहनने की आदत नहीं थी. लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि मुझे शर्मीली और परम्परावादी समझ लिया जाय और अन्य लड़कियों को बेशर्म. मुझे इसी सोच से आपत्ति है कि कोई अपने कप ढंके या उघाड़े, ये उसकी इच्छा पर निर्भर होना चाहिए, दूसरे की सोच पर नहीं. चाहे ये सोच रूढ़िवादी समाज की हो या बाज़ार की. हमें दोनों का एक साथ विरोध करना पड़ेगा.
एकदम सही कहा मुक्ति--
" इसे औरतों पर छोड़ देना चाहिए कि वो क्या पहनें और कैसे पहनें. अपने स्तनों को लेकर सहज होना हमें अपनी बच्चियों को किशोरावस्था से ही सिखाना होगा. उन्हें यह भी बताना होगा कि अगर 'छुपाना' पुरुषों के अहं को तुष्ट करता है, तो 'दिखाना' उनकी कुंठा को. इसलिए लड़कियाँ सहज रहें और दूसरों के कहें मुताबिक़ नहीं अपनी इच्छा से कपड़े पहनें."
मेरी नज़र में "इट्स माय लाइफ , माय चोइस " की बात हमेशा रहती हैं . राईट टू चूस , पुरुष स्त्री के लिये बराबर हैं .
कुछ हमे सही लगता हैं , कुछ नहीं लेकिन जिनके लिये वो सही हैं हमे उनके उसको सही माने के अधिकार को मानना चाहिये .
शालीनता से बड़ा कुछ नहीं हैं और वो हम हर पहनावे में लग सकते है , बिना पहनावे के रहना आदिवासियों के लिये सही हैं , लेकिन शहर में इसका चलन नहीं हैं , हा कितना ढकना हैं और कितना नहीं ये अपनी समझ और अपने आस पास के लोगो पर भी निर्भर हैं , आस पास के लोगो की सोच पर नहीं
काफी पहले सुजाता ने इसी ब्लॉग पर वर्जिनिटी को लेकर पोस्ट दी थी मैने तब भी कहा था की सबकी अपनी चोइस हैं और वो उनका अधिकार हैं किसी की पसंद ना पसंद से क्या होता हैं .
एकदम सही रचना- राईट टू चूस। लेकिन वर्जिनिटी (मेरे विचार से आप वर्जिनिटी ऑन सेल या हाइमेनोप्लास्टी का जिकर कर रही हैं)तो विशुद्ध पुरुष की मांग है कि वह जिस स्त्री से संसर्ग करे, वह पहली हो, भले ही वह खुद पहला न हो। हाइमेन का कोई उपयोग (सौंदर्य/एस्थेटिक्स के लिए भी) नहीं है इसलिए हाइमेनोप्लास्टी किसी स्त्री की चॉइसकभी नहीं हो सकती।
अपने शरीर को लेकर कम्फर्टेबल होना ही असली आज़ादी है.
ना किसी को खुश करने के लिए ना ही किसी के डर से अपने शरीर को छुपाने की कोशिश होनी चाहिए .
अनुराधा
मै ऐसी बहुत से महिला को जानती हूँ , जो ये खुद चाहती हैं और मै मानती हूँ अगर वो चाहती हैं तो उनको पूरा अधिकार हैं इस को करवाने का .
हाइमेनोप्लास्टी आज ४० से ऊपर की महिला अपनी ख़ुशी से करवाती हैं , अब स्त्री अपनी सेक्सुअल लाइफ के लिये जागरूक हैं जो पहले नहीं था . बस मुझे लगता हैं हमे इन सब बातो को राईट टू चूज में रखना चाहिये
आपके प्रति आदर.
राजस्तान की महिलाओं का मानना है कि उनका चेहेरा उनका अपना है उनकी पहचान इसी से वे इसको छुपाती है और बाकी सब तो हर औरत के पास है कौन कौन है पता ही नही चलता ।
यह जो स्तन नितम्ब की बढोतरी 12 सै 16 की उमर तक शुरू होती है वह हारमोनल एक्टिविटि के चलते होती है (पुरुषों में दाढी मूछ आना, कंठ फूटना )और यह प्रकृति की व्यवस्था है कि स्त्री पुरुष एक दूसरे की और आकर्षित हों प्रजनन करे और प्रजाति चलती रहे ।
अब आकर्षण का सामान खुला रहेगा वह भी सिर्फ कुछ में तो परुष आकर्षित तो होंगे हीं यदि सारी स्त्रियां ही ये करें जैसे केरल मे तो शायद समस्या इतनी जटिल ना हो ।
@ रचना-- हाइमेनोप्लास्टी की सेक्शुअल प्लेज़र में भी कोई भूमिका नहीं है। वह सिर्फ एक झिल्ली होती है, जो किसी भी कारण से, किसी भी वक्त फट सकती है, जिसका हमें पता तक नहीं चलता। यह भी भ्रम है कि हर कुंवारी स्त्री का हाइमेन सुरक्षित रहता है, संसर्ग के वक्त तक- आज भी और पहले भी।
@ आशा जोगलेकर "यदि सारी स्त्रियां ही ये करें जैसे केरल मे तो शायद समस्या इतनी जटिल ना हो ।"
आशाजी, केरल में तो समस्या ही यह थी कि औरतों को ऊपरी कपड़े पहनने की मनाही थी।
rashmi ravija has left a new comment on your post "शरीर अगर हमारे लिए शर्म का विषय है तो हमारा पूरा व...":
अपने शरीर को लेकर कम्फर्टेबल होना ही असली आज़ादी है.
ना किसी को खुश करने के लिए ना ही किसी के डर से अपने शरीर को छुपाने की कोशिश होनी चाहिए .
सुजाता, कुछ तो गड़बड़ है कमेंट पोस्ट करने में। मैं कई कमेंट देख रही हूं अपने मेल में, जो यहां नहीं दिख रहे हैं और मेल से कॉपी करके अपने आईडी से मुझे यहां पोस्ट करने पड़ रहे हैं। आपके पास कोई कमेंट वाला option होगा। एक बार फिर देख लीजिए प्लीज़।
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anuradha
all these things are now even known to teenagers , but when they are adults and when they are intrested in beautifying their bodies we have to understand their right to choose
yes we can give informative posts and make them aware but beyond that its their life
cosmetic surgery are very common , not because people need it but because people have money to use in such things
breast implants . nose correction , lip correction , permanent eye brow etc are beauty therapies so is virginity revisited
it primarily has nothing to do with any thing moralistic or scientific or theory based
its just that now people have money , now they have knowledge and they want to look beautiful and young so its their choice
you can see young girls of 18-25 going in for facials in beauty parlour , before the age of 40 why do you need facials , the skin has natural glow in itself and if tempered it looses nautral water that nourishes the skin but people still go in for it
after 40 such people have a very hard skin and then goin for botox
its not that they are unaware its just that money , knowledge makes them experiment and there is so much more exposure now thru net and other divice that peole are more aware of good and bad , but if they chose bad , they cant be made to give up they choice because now they are free to do
अनुराधा जी,
स्पैम के कमेंट तो पब्लिश कर दिए रचना जी के कहे अनुसार पर ऐसा अचानक क्यो शुरु हुआ कि कमेंट स्पैम मे जाने लगे?
रचना जी,
आपका ये'राइट टू चूज़' अभी जस का तस है यह आपकी सोच और व्यवहार मे कंसिस्टेंसी तो दिखाता ही है ...पर खैर,
चुनने या चॉयस के हमेशा कुछ निर्धारक होते हैं , कुछ आधार होते हैं ...वे कौन तय करता है ? स्त्री के लिए ?यह भी विचार कीजिए तो शायद चिंतन आगे बढे।
"चुनने या चॉयस के हमेशा कुछ निर्धारक होते हैं , कुछ आधार होते हैं ...वे कौन तय करता है ? स्त्री के लिए ?"- यही है असली मुद्दा कि महिलाएं जो भी करती हैं, उसके पीछे नजरिया क्या और क्यों है? रचना, वर्जिनिटी तो दिखाई भी नहीं पड़ती,जैसेकि चेहरा दिखता है- फेशियल करवाने पर चमकता हुआ (क्या सचमुच, मैं आजतक विश्वास नहीं करती)। वैसे चेहरा चमकाना भी महिलाओँ के लिए क्यों महत्वपूर्ण लगता है-- ताकि वे खूबसूरत लग सकें,पर आम पुरुषों को क्यों नहीं अपनी खूबसूरती की फिक्र करने की जरूरत महसूस होती है? क्योंकि औरतें डिमांड नहीं करतीं। सुंदर बनने का दबाव औरत पर ही है औरयह आता है पुरुषकी तरफ से, प्रत्यक्ष हो जररी नहीं। सामाजिक नॉर्म यूं ही नहीं बन जाते।
माफ़ कीजियेगा अनुराधा जी आजादी और नग्नता में कुछ तो फर्क होना ही चाहिए, आज़ादी का मतलब ये नही की आप अपने बदन को कपड़ो से भी आजाद कर रोड पर घुमे! शालीनता,शर्म भी कोई चीज़ होती है|
माँ-बाप को पता होता है की बेटे बहु घर में क्या कर रहे है इसका मतलब की वो बहार भी वैसे ही रहे और तर्क ये दे की हम पति -पत्नी है? हम क्यों शर्माए?
एकदम सही अनुराधा जी.
आपके दोनो ही आलेख गजब की शोध के बाद लिखे गये हैं साधुवाद ऐसे ही लगे रहिये
everything is in mind, with power of mind one can make anyone nude and see anything.
with or without clothes does not matter.
very well written artcle..congr8
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