रोमानियाई कवयित्री आना ब्लांडीयना का लाइब्रेरी की एक किताब में मिलना ऐसे था जैसे किसी तिलिस्म से गुज़रते हुए एक सच्चे आइने का मिल जाना। मैं चौंक गई थी और आँसू आ गए थे ।जब किताब को यूँ ही खोला और सामने उनकी कविता थी “युग्म ” (A Couple) और फिर 'कितना आसान' फिर एक एक करके उनकी सभी कविताएँ जो उस संग्रह में थी ...
आना का जन्म 25 मार्च 1942 को टीमीसुआरा नगर में हुआ। कम्युनिस्ट शासनकाल में (1960- 63) के दौरान उनकी कविताएँ प्रतिबंधित थीं। 1964 में उन्होने फिर लिखना शुरु किया। उनकी पहलीर चना मात्र 12 साल की उम्र में प्रकाशित हुई थी। उन्हें राइटर्स यूनियन पुरस्कार,रोमानियाई अकादमी का पुरस्कार, बुखारेस्ट की असोसिएशन ऑफ राइटर्स का पुरस्कार, द हर्डर पुरस्कार प्राप्त हैं।
आना का जन्म 25 मार्च 1942 को टीमीसुआरा नगर में हुआ। कम्युनिस्ट शासनकाल में (1960- 63) के दौरान उनकी कविताएँ प्रतिबंधित थीं। 1964 में उन्होने फिर लिखना शुरु किया। उनकी पहलीर चना मात्र 12 साल की उम्र में प्रकाशित हुई थी। उन्हें राइटर्स यूनियन पुरस्कार,रोमानियाई अकादमी का पुरस्कार, बुखारेस्ट की असोसिएशन ऑफ राइटर्स का पुरस्कार, द हर्डर पुरस्कार प्राप्त हैं।

I believe that we are a botanic nation
Otherwise, where do we get this calmness
In
which we await the shedding of our leaves?
तो इसमें देशद्रोह की गंध सूंघ लेना नेशन की अवधारणा पर भी सवाल उठाने की ज़रूरत दिखाता है। उनके पहले ही काव्य संग्रह को इतना सेंसर किया गया कि उन्हें उसे अपना संग्रह कहते संकोच होता रहा। इतने सेंसरशिप और इतने पोलिटिकल निगोसिएशन के बाद फिर कविता कौन सा सच दे सकती है? वे लिखती हैं -
Through the night
he came towards me, he,
The
poet failed by fear.
He
was very handsome.
You
could see the poetry in his body, like an x-ray film.
Poetry unwritten out of fear.
आना को ध्यान से पढे जाने की ज़रूरत है। खासतौर से उनकी वे रचनाएँ जो जिनमें जो स्त्री-पुरुष के बीच के प्रेम और वैमनस्य भरे जटिल संबंध, जटिल भावों को एक बेहद सधे हुए शिल्प में कहती हैं। जो सवाल वे उठाती हैं वे बेहद मानीखेज़ हैं। यहाँ उस मनुष्य की पीड़ा आकार लेती है जो टूट कर प्रेम तो करना चाहता है लेकिन जेंडरड सामाजिक संरचनाएँ उन्हें ऐसी भूमिका में फिट करती है कि जुड़े होकर भी वे एक दूसरे के विपरीत हो जाते हैं जैसे एक ही डाल से जुड़ी दो शाखाएँ... स्त्री और पुरुष जो रहते हैं एक दूसरे की ओर पीठ किए हुए लेकिन वे ही जान सकते हैं एक दूसरे के लिए अपनी प्रेम की भटकन को ...
युग्म
कुछ लोग सिर्फ तुम्हे देख पाते हैं
बाकी सब लोग सिर्फ मुझे देखते हैं
हम एक दूसरे को बड़ी अच्छी तरह करते हैं प्रतिबिम्बित
कि कोई हमें नहीं देख सकता एक ही समय में
और कोई भी ऐसे किनारे पर रहने की हिम्मत नहीं कर सकता
जहाँ से हम दोनो को देखा जा सके ।
तुम देखते हो सिर्फ चाँद
मैं देखती हूँ सिर्फ सूरज
तुम सूरज के लिए तड़पते हो
और मैं चाँद के लिए
लेकिन हम रहते हैं एक दूसरे की तरफ पीठ किए हुए
अस्थियाँ , जो घुल-मिल चुकी हैं पहले ही
वे हमारे रक्त के साथ ढोती हैं अफवाह
एक हृदय से दूसरे हृदय तक ।
तुम कैसे हो भला !
मैं अपने हाथ उठाकर
पीछे की तरफ अपने आप को खींच लेती हूँ
और पाती हूँ तुम्हारे कंधे की मीठी चुभती हड्डी
जो तनिक ऊपर की ओर बढकर मेरी उंगलियाँ सहलाती हैं
तुम्हारे ये दैवी होंठ
अचानक लौट आते हैं
मेरा मुँह कुचल देने के लिए , खून से लथपथ।
आखिर हम एक जैसे कैसे हैं ?
हमारे पास हैं चार चार बाहें , अपनी सुरक्षा के लिए
लेकिन यहाँ , सिर्फ मैं ही हमला कर सकती हूँ दुश्मन पर
और सिर्फ तुम,वहाँ के दुश्मन पर,
हमारे पास हैं चार पैर भागने के लिए
लेकिन तुम भाग सकते हो सिर्फ अपनी दिशा में
और मैं अपनी।
हरेक कदम पर छिड़ी है ज़िंदगी और मौत की जंग ।
आखिर हम एक जैसे कैसे हैं ?
क्या हम इकट्ठे मरेंगे या फिर हममे से कोई किसी एक को उठाएगा
थोड़ी देर के लिए
औरोंके शव हमारी तरफ पड़े होंगे
मृत्यु से संक्रमित , धीरे ,बहुत धीरे
या फिर शायद पूरी तरह कभी भी नही मरने के लिए
हरगिज़ नही
लेकिन अनंत काल तक ढोते रहनेके लिए
एक दूसरे का मीठा भार ।
छीन लेता है हमेशा के लिए
एक कोहान जितना
एक मस्से जितना...
आह, सिर्फ हमीं जानते हैं कि क्या होती है भटकन
एक दूसरे की आँखों में झांकने के लिए
और अंतत: समझने के लिए
लेकिन हम रहते हैं एक दूसरे को पीठ दिए हुए
दो टहनियों की तरह उगे हुए
और अगर एक को टूटकर बिखर जाना चाहिए
सब कुछ लुटाकर बिखर जाने के लिए
तो तुम देख पाओगे किसी दूसरे को भी
पीठ पीछे से , जहाँ से तुम आए थे
खून से लथपथ , काँपते हुए
टूटे हुए।
डरना मत
डरना मत ।
सब कुछ इतना सहज होगा
कि तुम कुछ समझ नही पाओगे
देर देर तक।
तुम इंतज़ार करोगे किसी शुरुआत की।
और तभी, सिर्फ तभी
जब तुम शुरु करने लगोगे यकीन
कि मैं अब तुम्हे प्यार नही करती
हालांकि तुम्हारे लिए यह समझ पाना मुश्किल होगा
लेकिन मैं चाहूंगी
कि घास की पत्तियाँ उगें
इस बगीचे के हमारे वाले कोने में
और वहाँ तब जाकर
फुसफुसा कर बोलने के लिए:
डरो मत,
वह मज़े में है
और इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा
मेरी इन्हीं जड़ों के पास
कितना आसान
ओह, अगर मैं होती सिर्फ एक मोमबत्ती
धीरे धीरे बुझ जाने के लिए
एक ओर से दूसरी ओर तक
बड़ी आसानी से , जैसे कि
बच्चों के हिसाब...
मेरा दिमाग सबसे तेज़ है- इसकी खुशी
हो जाएगी गायब।
लोग कहेंगे "कितनी बद्दिमाग है यह लड़की!"
लेकिन मुझे कुछ याद नही
और न कोई कुछ समझने की कोई कोशिश्।
तब मेरा हृदय पिघलेगा
और जहाँ न मैं किसी को प्यार करूंगी
वहाँ नफरत भी नही करूंगी
कोई तकलीफ मुझ तक नही पहुँच पाएगी
और लोग कहेंगे "कैसी हृदयहीन है यह लड़की!"
बार-बार हज़ार बार
लेकिन फिर कोई भी आशंका नही
कोई आवेश नही
और मेरा खून, नौकाएँ ढोनेवाला
छितर जाएगा
सिर्फ निस्तेज घुटने
सम्मान से काँपते या धरती पर टिके।
कोई कुछ भी नही बोलेगा।
आखिरी खामोशी में
वह मोम का दरिया
खास तौर पर दण्डित, और शमित
उन डरावनी परछाइयों के लिए
जिसे इस दुनिया में ले आई थी उसकी रोशनी।
डरना मत
डरना मत ।
सब कुछ इतना सहज होगा
कि तुम कुछ समझ नही पाओगे
देर देर तक।
तुम इंतज़ार करोगे किसी शुरुआत की।
और तभी, सिर्फ तभी
जब तुम शुरु करने लगोगे यकीन
कि मैं अब तुम्हे प्यार नही करती
हालांकि तुम्हारे लिए यह समझ पाना मुश्किल होगा
लेकिन मैं चाहूंगी
कि घास की पत्तियाँ उगें
इस बगीचे के हमारे वाले कोने में
और वहाँ तब जाकर
फुसफुसा कर बोलने के लिए:
डरो मत,
वह मज़े में है
और इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा
मेरी इन्हीं जड़ों के पास
कितना आसान
ओह, अगर मैं होती सिर्फ एक मोमबत्ती
धीरे धीरे बुझ जाने के लिए
एक ओर से दूसरी ओर तक
बड़ी आसानी से , जैसे कि
बच्चों के हिसाब...
मेरा दिमाग सबसे तेज़ है- इसकी खुशी
हो जाएगी गायब।
लोग कहेंगे "कितनी बद्दिमाग है यह लड़की!"
लेकिन मुझे कुछ याद नही
और न कोई कुछ समझने की कोई कोशिश्।
तब मेरा हृदय पिघलेगा
और जहाँ न मैं किसी को प्यार करूंगी
वहाँ नफरत भी नही करूंगी
कोई तकलीफ मुझ तक नही पहुँच पाएगी
और लोग कहेंगे "कैसी हृदयहीन है यह लड़की!"
बार-बार हज़ार बार
लेकिन फिर कोई भी आशंका नही
कोई आवेश नही
और मेरा खून, नौकाएँ ढोनेवाला
छितर जाएगा
सिर्फ निस्तेज घुटने
सम्मान से काँपते या धरती पर टिके।
कोई कुछ भी नही बोलेगा।
आखिरी खामोशी में
वह मोम का दरिया
खास तौर पर दण्डित, और शमित
उन डरावनी परछाइयों के लिए
जिसे इस दुनिया में ले आई थी उसकी रोशनी।
संग्रह – सच लेता है आकार
समकालीन रोमानियाई कविता
अनुवाद : रणजीत साहा
साहित्य अकादमी
3 comments:
पढ़ा , पढना समझना भी है ,महसुस करना भी ,पढ़ना,कुछ छुपा देखना भी है पर इस "कुछ" से आगे और भी है जहा शब्दों की सामर्थ्य नहीं होती ,वहां शब्द नहीं होते, सिर्फ रूह/रूहें होती हैं -कोई अर्थ नहीं होता सो कोई अनर्थ भी नहीं होता -वैसे बकवास किया मैंने !
रोमानियाई कवयित्री आना ब्लांडीयना के बारे में और उनकी सुन्दर रचना पढ़वाने हेतु आभार!
http://sabkachaupal.blogspot.in/
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