चोखेरबाली पर दस साल पहले हमने हाइमेन यानी कौमार्य झिल्ली की मरम्मत करने वाली
सर्जरी के अचानक चलन में आने पर वर्जिनिटी/कौमार्य की फ़ालतू और बकवास
धारणा पर एक पोस्ट लिखी थी।इन सालों में जब हम सोच रहे थे कि ऐसे फ़ितूर समाज में कम
हो गए होंगे, एक दिन अचानक उस गोरखधंधे का पता लगा जिसमें अब
सर्जरी की भी ज़रूरत खत्म हो गई थी। महज़ कैप्स्यूल्स के इस्तेमाल से पहली रात को कौमार्य
की गवाही देने का और बाकी के वैवाहिक जीवन की सुख-शांति सुनिश्चित कर लेने का सरल उपाय
लड़कियों के पास मौजूद था। जबकि इसकी कोई गारण्टी कभी नहीं होती। यही नहीं, चिर-कौमार्य का एह्सास फिर से ज़िंदगी में जगाया जा सके इसके लिए भी बिना सर्जरी
के लेज़र से योनि को कसने की तकनीक बाज़ार में आ चुकी। स्तनों और बाकी देह को कसने की
तो तकनीक उप्लब्ध थी ही सहजता से। आख़िर कितना खुद को ऑल्टर करना होगा स्त्री को,
मन से, तन से ...अपने पुरुष के प्रेम को पाने के
लिए? जब पतियों द्वारा पहली रात के नकली खून का परीक्षण करवाया
जाने लगेगा तब किस दिशा में भागेंगी लड़कियाँ ? तब बाज़ार एक और
जाल बिछाएगा ! एक सच छिपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने पड़ते हैं।अब समय है एक एक झूठ को
अनडू करने का।
आज चोखेरबाली पर पढिए प्रतिमा सिन्हा की यह टिप्प्णी जिसमें व्यक्त निराशा और
ग़ुस्सा एकदम स्वाभाविक है, जायज़ है। सोशल मीडिया पर विरोध के बावजूद ऐसे उत्पाद आज भी
अमेज़ॉन पर मौजूद हैं और ज़ाहिर सी बात है बिक भी रेह होंगे। हमें लगातार लिखना और विरोध
करते रहना होगा। - सुजाता
'तुम हो' यह सिद्ध करने के लिए तुम्हारा आधार कार्ड और पासपोर्ट काफ़ी है
एक जानी-मानी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी ने अपनी लिस्ट में एक प्रोडक्ट ऐड किया
है। वर्जिनिटी साबित करने वाला ब्लड यानी खून। 'i-virgin, blood for the first night'
नाम से खुलेआम बिक रही ये कैप्स्यूल्स मँगवा कर कोई भी लड़की शादी
के बाद अपने पति के सामने अपना कौमार्य सुरक्षित होने का दावा कर सकती है और वह भी
प्रमाण के साथ यानी सफेद चादर पर लाल खून के धब्बे।
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चित्र इंटरनेट से साभार |
पहले के ज़माने में यह ज़रूरी रस्म हुआ करती थी यह तो सुना था। लड़की की
वर्जिनिटी चेक करने का यह नायाब और ग़ज़ब तरीक़ा तथाकथित बड़े-बड़े, कुलीन
लोगों के घरों में अपनाया जाता था। पति से पहली बार सेक्स करने के बाद अगर खून के
धब्बे, सफ़ेद चादर पर ना पड़ें तो लड़की ज़िन्दगी भर अपने आप को
चरित्रवान साबित करते रहने को मजबूर होती थी। उसे जवाब देने होते थे पति के सामने,
घर वालों के सामने और कभी-कभी दुनिया वालों के सामने भी। शादी और
पति के साथ संसर्ग का सारा आनन्द इसी भय में घुलता रहा कि पता नहीं अंदर हाइमन की
झिल्ली फटी है या बची है। एक ऐसी परीक्षा में फेल होने का डर जिसकी तैयारी में
अपना कोई हाथ ही नहीं।
लेकिन दुनिया की तरक्की हुई औरत से
जुड़ी प्रथाएँ वहीं की वहीं रह गई, गर्त में।
मेडिकल साइंस में सुबूत के साथ यह साबित कर दिया कि कुंवारेपन में कौमार्य
का पर्याय कही जाने वाली हाइमन झिल्ली सेक्स के अलावा भी कई दूसरी वजह से फट सकती
है जैसे दौड़ने से, कूदने से, खेलने से, साइकिलिंग करने से और ऐसी किसी भी गतिविधि में बहुत ज़्यादा सक्रिय रहने
से लेकिन यह सारे दावे एक तरफ़ और समाज का फ़तवा दूसरी तरफ़। सिद्ध तो यह भी हो गया कि
हाइमेन एकदम फिज़ूल और बकवास चीज़ है। जिसके होने न होने का कोई अर्थ नहीं है।
तुम किसी को सुबूत देने के लिए पैदा नहीं हुई और ना ही कोई ऐसा पैदा हुआ है जो तुमसे तुम्हारे होने का सबूत मांग सके। 'तुम हो' यह सिद्ध करने के लिए तुम्हारा आधार कार्ड और पासपोर्ट काफ़ी है।
बहुत ख़ुशनसीब होंगी वे औरतें, जो आत्मा तक अपमानित
करने वाले इस अनुभव से नहीं गुज़रीं लेकिन ज़्यादा संख्या ऐसी औरतों की रही
जिन्होंने यह अपमान ही नहीं वैवाहिक जीवन में यौन-सम्बंधों से जुड़े तमाम अपमानों को
न सिर्फ़ झेला है बल्कि उसकी पूरी कीमत भी चुकाई है। ऐसे हालात में बाज़ार इसे सबसे बेहतर
ढंग से समझता है कि सफ़ेद चादर पर खून के लाल धब्बों की कीमत क्या है ?
उस जानी-मानी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी ने भी फ़ायदे का यही धंधा शुरू कर दिया
है। अभी तक उसने कितनी 'आई-वर्जिन' पिल्स बेची हैं इसकी
जानकारी मेरे पास नहीं है। मगर इस ख़बर को पढ़कर लगता है कि अब लड़कियाँ सचमुच "तू डाल-डाल, मैं
पात-पात" वाले मूड में आ गई हैं। प्यारे पतिदेव अगर पत्नी के प्यार और समर्पण
को परे रख कर उससे कुंवारे होने का सबूत मांगेंगे तो पत्नी भी पहले से तैयारी करके
रखेगी। अपने वर्जिन होने का सबूत पेश कर देगी। दम हो तो काट कर दिखाओ।
अब खुलेआम ऑनलाइन जो चीज़ बिक रही है, जाहिर है उसकी जानकारी
सबको है। मतलब मियां जी खुल्लम खुल्ला उल्लू बनने को तैयार रहेंगे। फिर किसका सबूत
सच्चा था और किसका खरीदा हुआ इसका फ़ैसला करना भी मुश्किल होगा। सीधी सी बात है कौमार्य की इच्छा रखने वालों की अहम तुष्टि के रास्ते
निकाल लिए गये हैं। कल को पति लोग उस खून की भी जाँच कराने लगेंगे कि तुम्हारा ही है
या कैप्स्यूल का कमाल है ! यह धंधा कितना आगे जाएगा यह
नहीं कहा जा सकता लेकिन बेवकूफ़ी भरे रिवाजों से दो-दो हाथ करने के मूड में आई
लड़कियों से एक बात कही जानी बेहद ज़रूरी है।
लड़कियो, तुम्हारे
पागलपन की कोई सीमा है या नहीं ?
उन्होंने कहा - 'गोरी चाहिए।' तुमने फेयरनेस क्रीम का
धंधा चमका दिया। उन्होंने कहा - 'पतली चाहिए।' तुमने चर्बी घटाने वाले विज्ञापनों के व्यूज़ बढ़ा दिए। वो कहते हैं - 'वर्जिन चाहिए।' अब तुम खून की गोलियाँ खरीदने लगोगी ? और फिर
ज़ोर-शोर से ऐलान करती फिरोगी कि तुम आज की आज़ाद नारी हो ? अपने
फ़ैसले खुद करती हो ? अपना जीवन अपने हिसाब से जीती हो ?
जब तक तुम अपने लिए बनाए हुए ऐसे बेवकूफ़ाना सांचों के हिसाब से ढलने की
कोशिश करती रहोगी, तुम्हारी आज़ादी का ऐलान न सिर्फ़ अधूरा है बल्कि पूरा का
पूरा झूठ भी है। बात तो तब है कि तुम इन सांचों को तोड़ो और अपनी शर्तों पर आगे
बढ़ो।
यह समझ सको कि तुम्हें किसी के सामने अपना कुछ भी सिद्ध करने की ज़रूरत
नहीं। ना ही को कौमार्य, ना ही संसर्ग। यह जीवन तुम्हारा है। देह तुम्हारी है। तुम
जो चाहो, करो। तुम किसी को सुबूत देने के लिए पैदा नहीं हुई
और ना ही कोई ऐसा पैदा हुआ है जो तुमसे तुम्हारे होने का सबूत मांग सके।
'तुम हो' यह सिद्ध करने के लिए
तुम्हारा आधार कार्ड और पासपोर्ट काफ़ी है। इसके अलावा किसी और प्रॉडक्ट पर
तुम्हें विश्वास नहीं करना है।
उम्मीद करती हूँ यह और इस जैसे अन्य प्रॉडक्ट बाज़ार का सबसे फ्लॉप प्रॉडक्ट
साबित हो।
प्रतिमा सिन्हा
20 वर्षों से वाराणसी में अपने उत्कृष्ट वाणी-शिल्प, मंच संचालन व उद्घोषणा
रंगमंच और लेखनी के माध्यम से स्त्री केन्द्रित विषयों को स्वर देने के लिए भी जानी जाती हैं।
कहानियों, कविताओं, ग़ज़लों, नज़्मों और नाटकों का निरंतर लेखन. हिन्दी-उर्दू अख़बारों के साथ ही विभिन्न वेब पोर्टल और ब्लॉग्स पर लगातार प्रकाशन।