- लक्ष्मी शर्मा
एक थी लड़की... नहीं!
कहानी के आरंभ में ही 'थी' कहना अजीब लगता है, इसलिए थी नहीं है. तो एक लड़की है, एक सामान्य, मध्य आकार के शहर में मध्य वित्त परिवार, जो शेयर बाजार के धराशाई होने के बाद निम्न मध्य तक जा पड़ा है, में रहती है. साधारण रंग रूप की, सीधी-साधी, बिल्कुल एचएमटी टाइप की. जी नहीं, उसे एचएमटी अर्थात हिंदी मीडियम टाइप विशेषण मेरा दिया हुआ नहीं
है यह तो उसकी कॉलेज की सहपाठियों ने उसे दिया है. लड़की है ही ऐसी, आज के जमाने में भी सलवार-कुर्ता पहनती है और
उस पर दुपट्टे को पूरा फैला कर रखती है, सीधी-सादी कसी हुई चोटी बनाती है.
लड़की सत्तावन प्रतिशत नम्बरों से
बारहवीं पास करने के बाद हिंदी, समाजशास्त्र और गृहविज्ञान विषय लेकर शहर के ठीक-ठाक से कॉलेज
में ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में पढ़ रही है. अपनी स्थिति से वह स्वयं भी खुश है
और उसका परिवार भी. लड़की रोजाना सवेरे नहा-धोकर, घर के मंदिर
में अगरबत्ती जलाकर मत्था टेकने के बाद आंखें बंद करके पता नहीं क्या बुदबुदाती है, घर के छोटे-मोटे काम में मां की मदद करती है, नौ बजे नाश्ता करती है और अपनी साईकिल पर बैठकर कॉलेज के लिए
रवाना हो जाती है. कॉलेज में सदैव नियमित रहने वाली लड़की कभी कोई क्लास बंक नहीं
करती. अगर टीचर नहीं आए तो भी कैंटीन में जाने की जगह लाइब्रेरी में जाकर पढ़ती है
या घर आ जाती है, क्योंकि उसकी कोई मित्र ही नहीं है. क्लास खत्म होने पर लड़की
सीधे घर आती है, खाना खा कर कुछ देर बिस्तर पर लेटी एफएम रेडियो पर नए फिल्मी
गाने सुनती है. फिर उठ कर चाय बनाती है. सूख गए धुले कपड़े वगैरह समेट लाती है और
रात का खाना बनाने में माँ की मदद करती है. कभी नहीं भी करती, अगर कॉलोनी की कोई
सहेली उसके घर आ जाए या वो किसी के घर चली जाए तो. रात का खाना खाने के बाद लड़की
घंटा-डेढ़ घंटा टीवी देखती है और फिर सो जाती है.
उसकी यह दिनचर्या लगभग पूरे साल यथावत चलती है. हाँ, परीक्षा के दिनों में एफएम रेडियो और टीवी का समय उसकी पासबुक्स
ले लेती हैं तो छुट्टियों में कॉलेज का समय टीवी, रेडियो जैसे
स्थायी शौक और हॉबी क्लास जैसे अस्थायी शौक ले लेते हैं. बीच-बीच में फिल्में, ब्याह-शादी, त्योहार, रिश्तेदारों का आना-जाना, छोटे भाई से
झगड़ना या मम्मी-पापा के झगड़े से सहमने जैसे सामान्य मौके भी आते-जाते रहते हैं
जो आराम से गुजर भी जाते हैं.
जी, इतनी ही बोरिंग है यह लड़की और उसकी जिंदगी. वैसे यह लड़की-लड़की पढ़ना
आपको खटक नहीं रहा? जरूर खटक रहा होगा. कोई तो नाम होगा ही, होना भी चाहिए, सभी का
होता है. बिल्कुल इस लड़की का भी एक नाम है- नलिनी, कागजों में कुमारी नलिनी शर्मा.
लेकिन घर-बाहर सभी इसे निन्नी कह कर बुलाते हैं. यह हम आम हिंदुस्तानियों की खास
पहचान है, पहले अच्छे-भले नाम रखते हैं और फिर प्यार के नाम पर उन्हें बिगाड़ देते
हैं. सो अच्छी-भली लड़की का अच्छा-भला नाम भी बिगड़ गया- निन्नी.
आज सुबह से घर में रौनक सी है, निन्नी पास हो गई है. भले ही द्वितीय श्रेणी
में, पर लड़की ग्रेजुएट हो गई. अब आप सोच रहे होंगे इसमें रौनकें लगने जैसी क्या
बात है. बात है पाठको, ये आप नहीं समझेंगे अगर आप किसी बड़े शहर की मल्टीप्लेक्सी
या लैपटॉपी इक्कीसवीं सदी को चीज पिज़्ज़ा और डायट कोक आनंद लेते हुए भोग रहे
होंगे. पर आप हिंदुस्तान के किसी मंझोले या छोटे शहर के मध्यवर्गीय जीवन के
नुमाइंदे होंगे तो जरूर समझेंगे, चाहे सार्वजनिक स्वीकृति न दें. तो एक बी ग्रेड
शहर के बी ग्रेड परिवार की लड़की बी ग्रेड में पास हो गई.
निन्नी पास हो गई, बधाई भी बँट गई, पर अब आगे क्या? इस पर घर में बहुमत
नहीं है, सबकी अपनी-अपनी राय है. कॉलेज बीए तक ही है, प्राइवेट एमए निन्नी नहीं
करना चाहती. पापा छोटे-मोटे व्यापारी हैं, अभी-अभी शेयर मार्केट में खासा घाटा भी
खा चुके हैं इसलिए निन्नी पर कोई बड़ा खर्च नहीं करना चाहते. लेकिन दिक्कत यह है
कि शादी का खर्च उठाने की हैसियत भी अभी उनमें नहीं है. इसलिए उनका स्पष्ट मत है
कि “बहुत पढ़ ली बिटिया रानी! अब ज्यादा दिमाग मत लगाओ, घर में रहो, खुद पर थोड़ा
ध्यान दो, अपनी मां से खाना-वाना बनाना सीखो, एक साल मजे करो फिर तो शादी करके हमेशा के लिए चली
जाओगी.”
“ना जी, घर में खाली नहीं बैठेगी
लड़की. सारा दिन घर में बैठ कर ऊब जाएगी. खाली दिमाग शैतान का घर, फिर सारा दिन
टीवी देख कर मुटाने के अलावा क्या रहेगा इसके पास? और वैसे भी अच्छी पढ़ी-लिखी
लड़कियों को तो लड़के मिलते नहीं हैं, बीए भर करके
कौन लड़का मिलेगा इसे?” मां की प्रत्येक चिंता का अंतिम सूत्र बेटी के ब्याह से
जुड़ा होता है. “नहीं निंदी! तुम तो कंप्यूटर कोर्स कर लो. आजकल इसी में कैरियर के
चांसेस हैं.” जवान हो रहे छोटे भाई ने व्यावहारिक सलाह दी. हालांकि इसमें उसका भी
स्वार्थ छुपा है. घर में कंप्यूटर आए ये उसकी दिली तमन्ना है. लगभग सभी दोस्तों के
पास कंप्यूटर है, उसके पास नहीं. लेकिन निन्नी ने कंप्यूटर सीखने से साफ मना कर
दिया, वह भारत के बी ग्रेड शहर की बी ग्रेड लड़की है जिसकी अंग्रेजी बी ग्रेड तक
अभी नहीं पहुंची है. इस प्रस्ताव पर पिता के वीटो का मूल कारण है कंप्यूटर खरीदने
पर होने वाला खर्च, जिसे उठाने की स्थिति में वह नहीं है. बहरहाल काफी
विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि लड़की ब्यूटीशियन का कोर्स करेगी.
मां खुश है क्योंकि एक तो वह संस्थान
घर के काफी नजदीक है, दूसरे लड़के-मर्दों का झंझट भी नहीं है. और सबसे बड़ी बात वह
अपनी बेटी के चेहरे-मोहरे की असलियत जानती है, उससे चिंतित भी है. वहाँ जाएगी तो
कुछ तो लड़की अपने-आप को सुधारना-संवारना सीखेगी. लड़का मिलने में आसानी रहेगी और
हाथ में हुनर भी आ जाएगा जो आगे चलकर काम भी आ सकता है. भाई को कंप्यूटर नहीं मिल
रहा अब निन्नी कुछ भी करे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, इसलिए वह तटस्थ है. पिता प्रसन्न
है कि कोई बड़ा खर्च नहीं हो रहा.
तो अब निन्नी ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण ले रही है, दिनचर्या लगभग वही है.
हां, जरा देर से निकलती है और ज्यादा देर से घर में घुसती है. नाश्ता खा कर जाती
है, खाना साथ ले जाती है. एफएम रेडियो पर फिल्मी गीत पार्लर में सुनती है और टीवी
रात को घर पर ही देखती है. उसकी किताबें और पासबुक अब घर में नहीं है, निन्नी सहित
किसी को भी इसका मलाल नहीं है. ऊपरी तौर पर भी लड़की में कोई बदलाव नहीं आया, अब
भी वह ढीले सलवार-कुर्ते पर करीने से दुपट्टा ओढ़े (साइकिल की जगह रिक्शा से) सीधे
घर आती-जाती है. लेकिन एक बदलाव निन्नी में आया है, पहले ही कम बोलने वाली निन्नी
अब और भी कम बोलने लगी है. मम्मी-पापा, भाई को इससे क्या एतराज हो सकता है, गली-मोहल्ले
वालों को भी क्या पड़ी है जो इस बात से चिंतित हों, सो सब सामान्य ही चल रहा है.
निन्नी को ब्यूटी पार्लर जाते हुए
पूरे छह महीने हो गए. औरतों की भौहों और नाक के नीचे के बाल नोचते हुए, अधेड़ होती
महिलाओं के चेहरे पर क्रीम मलते हुए, बाहों और टांगों के फालतू बालों को मोम लगी पट्टियों
से उखाड़ते हुए और दुल्हनों को रंग-रोगन से सजाते हुए कुमारी नलिनी शर्मा दक्ष
ब्यूटीशियन बन गई. संस्थान की संचालिका हैरान है, यह देसी सी दिखाई पड़ने वाली
छोकरी इतनी जल्दी इतना अच्छा सीख जाएगी इसकी उसे कतई उम्मीद नहीं थी. सहकर्मी
लड़कियां निन्नी की प्रतिभा से जलती-कुढ़ती हैं. भले जलती-कुढती रहें, निन्नी को इस
सब से कोई मतलब नहीं है. वह अपना काम मन लगाकर करती है, रात को दबाकर खाना खाती है
और टीवी देख कर सो जाती है. वजन घटने की जगह तीनेक किलो बढ़ गया है पर इससे निन्नी
की मुटाती सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
इतने अच्छे समय में भी एक प्राणी चिंतित है, निन्नी की मां. वो समझ ही नहीं
पा रही है कि इतने सजाऊ माहौल में भी निन्नी बिलकुल वैसी ही क्यों है जैसी पहले थी.
निन्नी के रंग-ढंग पहले की ही तरह क्यों है. एक बार भी इस लड़की ने न लिपस्टिक
लगाई है न आइब्रो ही सुधारी है. इसके साथ की बाकी लड़कियों को देखो, फैशन के पीछे
दीवानी हुई पड़ी हैं. उनके खर्चों और फरमाइशों से मां-बाप हलाक हुए जाते हैं, और एक
यह लड़की... मां एक अज्ञात आशंका से सिहर कर अपनी आंखें बंद कर लेती है.
शाहजहांपुर वाली भाभी ने कहीं रिश्ते की बात चला रही है, शायद जल्दी ही वह
लोग देखने भी आएंगे, लड़की कुछ तो ठीक बने. “बेटा निन्नी, तुम इतना कुछ सीख गई हो,
कभी हमें भी तो दिखाओ अपना हुनर.” माँ चतुराई से अपनी बात कहती है.
“इसमें कौन सी बड़ी बात है मम्मी, किसी भी दिन पार्लर आ जाओ, वहां मैं सारे
समय यही करती हूं.” निन्नी ने सरलतम समाधान दिया. ‘हे भगवान! यह लड़की भी न...’ माँ
ने मन ही मन दांत पीसे.
“ब्यूटी पार्लर क्यों बेटा? किसी दिन
खुद ही सजकर बताओ ना. हम भी तो देखे हमारी निन्नी कैसी सुंदर लगती है तैयार होकर.”
मां ने लाड से पत्ता फेंका.
“मैं?? नहीं मम्मी, मुझे यह सब चोंचले अच्छे नहीं लगते. आपको देखना है तो
पार्लर आ जाओ.” “क्यों, क्या खराबी है इसमें? सजना- संवरना तो हम औरतों का खास गुण
है. और कल से तुम्हें भी कोई पसंद करेगा, तुम्हारी भी शादी होगी, यह सब तो करना ही
है. यही तो तुम्हारी उम्र है बेटी, अभी सिंगार-पटार नहीं करोगी तो कब करोगी?” मां
ने गुस्सा पीते हुए लाड जताया. “तब की तब देखेंगे मम्मी, अभी से मुझे कार्टून मत
बनाओ. निन्नी ने सपाटबयानी से जवाब दिया.
लेकिन मां का दिल कब मानता है, आखिर एक दिन वह निन्नी के पार्लर पहुंच ही
गई. सजी-धजी पार्लर संचालिका ने हार्दिकता से निन्नी की मां का स्वागत किया. मां
ने देखा वातावरण में रूप-रंग, शोखियाँ और अदाएं बिखरी पड़ी है. पुरुषों के दखल से
बिल्कुल मुक्त इस छोटे से घेरे में स्त्रियों की अपनी दुनिया है जहां वे सिर्फ खुद
को देख रही हैं, दूसरी औरतों से होड़ लेकर अपने को ज्यादा अच्छा बनाने में जुटी हैं.
निन्नी के साथ काम कर रही लड़कियां भी नोक-पलक दुरुस्त हैं, नोच-नोच कर वक्र
भंगिमा में लाई गई भोंहें, लिपस्टिक के सुघड़ उपयोग से सजे होंठ, काजल के घेरे में
नाचती हुई चपल पुतलियां, नई चलन के चुस्त कपड़े, नए-नए रंगों में डूबे लंबे नाखून,
पेडीक्योर से सजे रोमविहीन पैरों में हाई हील. ‘क्या दुनिया में बदसूरती बची ही
नहीं.’ निन्नी की मां ने सोचा फिर तोलती सी नजरों से मिनी को देखा. लगभग आपस में
जुड़ी भौहें, सुनहरे रोओं से भरी स्थूल बाँहें, ढीले-ढाले कपड़ों पर सादा सी
चप्पले पहने साधारण निन्नी उस रूपलोक में कुछ ज्यादा ही साधारण लग रही है. मां के
संस्कारी मन को एक बार तो अभिमान सा हुआ अपनी बेटी की अकृत्रिम सादगी पर, लेकिन
फिर उसकी अनुभवी व्यावहारिक बुद्धि निराश होने लगी. ‘हे भगवान! आज के जमाने में
कौन पसंद करेगा मेरी इस गाय को, आजकल गुण कौन देखता है, सब रूप पर मरे जाते हैं.’
“मिसेज शर्मा, आपकी नलिनी तो सचमुच
बहुत गुणी है.
जितनी जल्दी इतने सीखा, आज तक हमारे यहां कोई लड़की नहीं सीख पाई. अब तो हालत यह है कि
कुछ क्लाइंट्स तो नलिनी के अलावा किसी से ग्रूमिंग करवाना ही नहीं चाहती हैं? पार्लर-संचालिका
ने निन्नी की मां को बधाई दी. “यह सब तो आपका आशीर्वाद है मैडम, वरना हमारी नलिनी
तो कभी काजल तक नहीं लगाती.” निन्नी की मां ने विनम्रता से जवाब दिया. “ठीक कह रही
हैं आप मिसेज शर्मा. मैं भी इसे कितना कहती हूं खुद को कुछ तो संवारा करो. अरे भाई,
यहां कौन से मेकअप किट के पैसे लगते हैं या ब्यूटीशियन का चार्ज लगेगा. दूसरी
लड़कियों को देखिए, आने के बाद सबसे पहले खुद को संवारती हैं, फिर क्लाइंट्स को
अटेंड करती हैं. पर आपकी नलिनी को तो कोई रुचि ही नहीं है.”
“हां जी, अब आप ही समझाइए ना इसे. मैं
तो कह-कह कर थक गई लेकिन मेरी बात पर तो यह कान तक नहीं धरती. आज के जमाने में ऐसी
लड़कियां कौन लड़का पसंद करता है, कुछ तो खुद को बदले.” निन्नी की मां ने अब पूरी
तरह से अपना दिल खोल दिया.
“बिल्कुल सही कह रही हैं आप मिसेज
शर्मा, आज जमाना ग्लैमर का है. अब देखिए, हमारी बहुत सी नई क्लाइंट्स तो नलिनी से
काम करवाने में सिर्फ इसलिए हिचकती हैं कि यह देसी बहन जी क्या नए ट्रेंड का मेकअप
करेगी.” पार्लर संचालिका का अपना व्यावसायिक समीकरण है, वह नलिनी का मेक ओवर करना
चाहती है क्योंकि इससे उसके पार्लर की लोकप्रियता पर सीधा प्रभाव पड़ता है.इन दोनों स्त्रियों की बातों की गहराई
अन्य लड़कियों ने जाने समझी या नहीं, लेकिन ‘देसी बहन जी’ शब्द से उनके ईर्ष्या-भाव
को काफी आनंद आया जिसे उन्होंने तिरछी दृष्टि और वक्र मुस्कान के आदान-प्रदान से आपस
में साझा किया. लेकिन नलिनी इस सब से जरा भी प्रभावित नहीं हुई वह पूर्ववत एक
मुहासों भरे मुखड़े पर कीचड़ सा कुछ लपेटती रही जिसे संचालिका ‘मड मास्क’ बता रही
थी.
इसके बाद अब हालत यह है कि घर पर मां
की टोका-टाकी और पार्लर में संचालिका की सलाहें मिनी को लगातार कुरेदती रहती हैं. मां
ने पापा को भी जाने क्या पट्टी पढ़ाई है कि वह भी कभी-कभार कहने लगे हैं “क्या
निन्नू बेटे, ऐसे कैसे ढीली-ढाली घूमती रहती हो. अरे भाई स्मार्ट मम्मी की बेटी हो
कुछ स्मार्ट बनो. थोड़ा सा चेंज करो खुद को.”
“और क्या निंदी, देखो आजकल गर्ल्स
कितना स्टाइल में रहती हैं. तुम तो खुद ही ब्यूटीशियन हो, बी स्टाइलिश एंड ट्रेंडी
निंदी.” छोटा भाई एकदम अप-टू-डेट है.
“तू चुप रह, तुझे बनना हो तो बन जा
स्टाइलिश एंड ट्रेंडी. बड़ा आया मुझे सिखाने वाला.” निन्नी का गुस्सा भाई पर निकला
लेकिन मम्मी-पापा को भी समझ आ गया कि इस पत्थर पर घास नहीं उगने वाली. कुछ दिन के
लिए माहौल सामान्य हो गया लेकिन कितने दिन.
सीखने का एक साल गुजर गया. कुमारी नलिनी शर्मा की ट्रेनिंग पूरी हुई और अब
वह उसी पार्लर में नौकरी कर रही है, अच्छी-खासी तनख्वाह पाते हुए. समय निकल रहा है
तो जाहिर है उम्र भी निकल रही है. मिनी पहले से एक साल बड़ी और डेढ़ किलो ज्यादा
मोटी हो गई है. मां-बाप की व्यावहारिक चिंताएं बढ़ रही है, पर करें क्या? सीधी-सादी,
भली-भोली, संस्कारी लड़की को समझाएं तो क्या और डांटे तो क्या?
तो पाठकों! यह बोरिंग सी कहानी इसी तरह घिसटती रहती अगर एक छोटी सी घटना न घटी
होती. बड़ी नहीं, बहुत छोटी सी घटना और वह भी उस वक्त जब सहारनपुर वाली ननद का
देवर निन्नी को देखने आने वाला था. ऐन उसी दिन सड़क पार वाले ऊपरी मकान का हिस्सा
नए किरायेदार से आबाद होना था, हुआ.
नए किरायेदार यानी एक युवा जोड़ा, निन्नी से कुछ ही ज्यादा उम्र के. पत्नी
युवावस्था और नई शादी से उपजी खुशी की मिली-जुली चमक से चमकती हुई, खुलती रंगत की
औसत से बस जरा ज्यादा सुंदर लड़की है. पति भी औसत भारतीय पुरुषों के मापदंड में
आकर्षक सा ही है. हां, उसकी आंखों में एक खास चमक है. शायद नई शादी की खुशी में या
वैसे ही, जो भी हो चमकती आंखें उस पर खूब फबती हैं.
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ऑस्कर निन की पेंटिंग "गर्ल" गूगल से साभार |
तो उस दिन सुबह यह घटना हुई और शाम को
निन्नी को लड़के वाले देखने आए. अपने स्वभाव के अनुसार निन्नी ने कोई साज-सिंगार
नहीं किया और माँ के लाख कहने पर भी साड़ी-जेवर नहीं पहने. तो, लड़का आया, निन्नी को
आंख भर के देखा, भाई-भाभी के कान में कुछ कहा और ‘बाद में जवाब देंगे’ कह कर चला
गया. मिनी के मां-बाप के उदार प्रस्ताव के बाद भी भी उसने निन्नी से अकेले में बात
नहीं की.
अब आप सोच रहे होंगे कि इस दिन में ऐसा क्या घटा जिसने कहानी में चमत्कारी
वक्रता उत्पन्न की हो. बिलकुल नहीं घटा किंतु इस दिन की सुबह ने आने वाली घटना का
बीज जरूर बो दिया. इस दिन के तीसरे दिन मंगलवार था. सभी कामकाजी लोगों का सामान्य कामकाजी
दिन, लेकिन निन्नी के लिए छुट्टी का दिन. यही वह दिन है जब निन्नी सारा दिन घर पर
रहती है, जी भर के सोती है. बाकी छह दिन खड़े-खड़े काम करके पैरों में दर्द स्थाई
भाव की तरह जम जाता है, इसलिए मंगलवार को अपने पैरों को आराम देने के अलावा वह कुछ
नहीं करती. अब चूँकि सर्दियां चल रही है
इसलिए निन्नी अपने बाल धोकर लॉन में आ बैठी है. खाने की थाली सामने रखे धूप में
बैठी नलिनी सचमुच छुट्टी का आनंद ले रही है.
“नमस्कार”, एक महीन सी आवाज लोहे के
गेट से बेधड़क भीतर आ गई, मिनी ने जरा चौक कर सिर उठाया. सामने सड़क पार के मकान
वाली किराएदार लड़की खड़ी है.
गेट का एक पल्ला खोले, एक पग बाहर और
एक भीतर धरे, आमंत्रण के इंतजार में.
“नमस्कार, आइए. आप सामने रहती हैं ना?
बैठिए, मैं मम्मी को बुलाती हूं.” निन्नी ने उसकी तरफ एक कुर्सी सरकाई.
“अरे नहीं, मैं तो यूं ही चली आई थी
आपसे मिलने. आंटी को परेशान मत करिए. मेरा नाम पूजा है.” नई पड़ोसन की देह भी उसकी
आवाज की तरह पतली है.
“आपसे मिलकर खुशी हुई, मैं नलिनी हूं.”
“मैं जानती हूं आपको, तभी तो मिलने आई
हूं.” पूजा की बात से नलिनी हैरत में पड़ गई. यह लड़की उसे जानती है, कैसे? उसे
कुछ याद नहीं आ रहा.
“जी हां मेरी शादी में आपने ही मेरा मेकअप
किया था. अठारह मई, दस्तूर गार्डन, याद आया? इतना अच्छा मेकअप करती हैं आप, सभी
तारीफ कर रहे थे. मेरे पति को भी बहुत पसंद आया था.” पूजा ऐसे बोल रही है जैसे
नलिनी को यह सब याद होगा ही.
“अरे हां, कहिए कैसी चल रही है?’ रोज
के इतने क्लाइंट्स आते हैं इतनी दुल्हनें सजती हैं, किस-किस को याद रखे. लेकिन
ऊपरी शिष्टाचार निभाते हुए नलिनी ने सीधा-सीधा झूठ बोला.
“बहुत अच्छा चल रहा है, यह भी बहुत
अच्छे हैं, बहुत ख्याल रखते हैं मेरा.” नव विवाहिता की खुशी नई पड़ोसन की आवाज से
फूटी पड़ रही है. “मैंने आपको देखते ही पहचान लिया था, इन्हें भी बताया.” इसी
दौरान निम्मी की मां भी बाहर आ गई. परिचय की औपचारिकता और गर्म चाय की चुस्कियों के
बीच भी नई पड़ोसन का नई ब्याहता सुलभ उत्साह लगातार बोलता रहा. निन्नी तो चुप है
लेकिन मम्मी पूरी रुचि ले रही है, बातों के साथ उनकी निगाहें भी खूब चल रही है.
लगभग निन्नी की उम्र की है लड़की, लेकिन दोनों में कितना अंतर है. ये कितनी खुशमिजाज
है और कितनी अच्छी भी लग रही है. देखा जाए तो क्या अंतर है निन्नी और इसमें, वही
कद, वही उम्र, रंग में भी ज्यादा अंतर नहीं. अगर निन्नी जरा सा भी खुद पर ध्यान
दें तो ऐसी ही लगे. हां वजन जरूर निन्नी का कुछ ज्यादा है पर वो भी कम कर ही सकती
है, अगर चाहे तो. मां लगातार निन्नी को लेकर कुढ़ रही है.
“पूजा बेटी, अच्छा लगा तुमसे मिलकर. कभी-कभार
आ जाया करो. निन्नी का भी मन बहल जाएगा, वैसे तो इस समय कम ही मिलता है.” निन्नी आखिरी
वाक्य माँ ने निन्नी की चढ़ती त्योंरियां देखकर कहा. वो सचमुच चाहती है कि निन्नी इस
खुशमिजाज और शौकीन लड़की की दोस्त बने.
“जी
आंटी जी, लेकिन अभी तो मैं बुलाने आई हूँ नलिनी को. कल रात हम लोग नए घर की
ख़ुशी में अपने दोस्तों को एक पार्टी दे रहे हैं. नलिनी, तुम्हें जरुर आना है. और
हाँ, मेरा मेकअप तुम्ही करोगी. कल शाम का समय मेरे लिए बुक रखना. तुम चाहो तो
मैं पार्लर आ जाऊं या अपने घर करना चाहो तो यहाँ आ जाऊं, जैसे भी तुम चाहो.” पूजा
खुले-डुले स्वभाव की लडकी है, नलिनी से अनौपचारिक होने की पूरी छूट उसने खुद ही ले
ली है.
नलिनी को इस तरह की दोस्ती और ऐसे
दोस्तों का कोई अनुभव नहीं, न ही इस तरह की पार्टियों में वो कभी गई है. वो इस सब को टालना
चाहती है "मेकअप तो मैं कर दूंगी लेकिन उसके लिए आपको पार्लर ही आना पड़ेगा.
घर पर मैं मेकअप नहीं करती, कोई सामान भी यहां नहीं है. और पार्टी में बुलाने के लिए
थैंक्स, लेकिन मुझे पार्लर से लौटने में काफी देर हो जाती है इसलिए मैं
नहीं आ पाऊंगी."
"क्यों नहीं? अरे,ये हम जवानों की
पार्टी है कोई बुजुर्गों की नहीं जो सांझ ढलते ही खा-पीकर सो जाएं. हमारे यहाँ सब
मेहमान नौ बजे तक ही आएंगे, तुम जरूर आओगी, आंटी इसे जरूर आना है." पूजा ने निन्नी की मम्मी तक अर्जी
लगाई. मम्मी अनजान लोगों के घर देर तक चलने वाली पार्टी को लेकर शंकित है. 'राम जाने जाने कैसा हुड़दंग हो, दारु-वारू, नाच-गाना हो.' लेकिन मम्मी की व्यावहारिक बुद्धि ने तुरंत समाधान भी खोज
लिया. कौन दूर जाएगी, सामने तो घर है. अपनी उम्र के लोगों के बीच जाकर खुश भी होगी
और शायद कुछ सीखे भी. "हां हां पूजा, जरूर आएगी
नलिनी। मैं जरूर भेजूंगी इसे."
और यही हुआ, इच्छा ना होते
हुए भी पूजा के अनुरोध और मां के दबाव के चलते निन्नी को पूजा के घर जाना पड़ा. घर
नई गृहस्थी के नए सामान और सज्जा से दमक रहा था. कई लोग थे, सब युवा और आधुनिक. मिनी को देखते ही पूजा गर्मजोशी से उसकी ओर
लपकी "आओ नलिनी." फिर उसकी बांह पकड़ कर लगभग खींचते हुए अपने पति के
सामने ले जाकर बोली "मोहित! यही है वो, लो चूम लो इसके
हाथ."
कुमारी नलिनी शर्मा ने इससे पहले ऐसी बात कभी नहीं सुनी थी, उसने तो मां-पापा को भी कभी ऐसी बातें करते नहीं सुना था. वो
यह सब सुनकर लगभग बेहोश हो गई. उसकी दिन भर से थकी टाँगें लड़खड़ा गई और जीभ ऐसे
सूख गई मानो निर्जला का व्रत किया हो. उसकी इस हालत से बेखबर पूजा की बातें लगातार
चालू है "नलिनी! इनसे मिलो, ये मेरे पति है मोहित. अभी-अभी कह रहे थे तुम तो अप्सरा लग रही
हो, जी करता है तुम्हारा मेकअप करने वालों करने वाले हाथों को चूम
लूं."
नलिनी की पलकें मन-मन भर की हो गई, फिर
भी कांपते हाथों को उठाकर अभिवादन करते हुए उसने ऊपर देखा, सामने खड़ी
पुरुष आकृति भी थोड़ी संकुचित है. "नमस्कार, आप सचमुच बहुत
अच्छा मेकअप करती हैं. पर आप खुद बड़ी सादगी से रहती हैं, वैसे यह सादगी
आपको सूट भी करती है."
हे भगवान! एक ही दिन में इतने झटके, निन्नी इन सब
की अभ्यस्त नहीं है फिर भी किसी तरह संयत बनी रही. पार्टी शहर के हिसाब से बड़ी
हैपनिंग थी,. कुमारी नलिनी शर्मा के लिए तो नितांत नया अनुभव। खैर पार्टी
खत्म होने पर पूजा और मोहित दोनों ने नलिनी को दिल से धन्यवाद दिया. "नलिनी, अब तुम्हें आते रहना होगा." पूजा ने कहा
"पूजा ठीक कह रही है नलिनी जी, आपसे मिलकर सचमुच
बहुत अच्छा लगा. आती रहा करिए, और हां, आप के हाथों में कमाल का हुनर है." मोहित ने कहा.
अब नलिनी ने क्या सुना, क्या समझा, उसकी मनोदशा का विवरण पाठकों की कल्पना शक्ति पर है.
उस दिन के बाद निन्नी की पूजा से
सचमुच दोस्ती हो गई. समय मिलते ही दोनों एक-दूसरे के घर आने-जाने लगीं, यहां तक कि एक नई बात और हुई जो अब तक कभी नहीं हुई थी. नलिनी
शर्मा, द ब्यूटीशियन ने एक फुल मेकअप किट घर पर ही लाकर रख लिया है जो
गाहे-बगाहे उपयोग भी आता रहता है. नलिनी के लिए नहीं, पूजा के लिए.
पूजा के पतले होंठ और मोटी आंखें उसके चेहरे का खास आकर्षण हैं जिन्हें नलिनी अपने
प्रशिक्षित हाथों से हाइलाइट करती है तो कभी ब्लशर से उसके कपोल उभारती है. और
जितना निन्नी पूजा को सजाती है उतना ही मोहित पूजा पर रीझ कर कर निन्नी की तारीफ
करता है जिसे श्रीमती पूजा पूरी उदारता के साथ नलिनी को फारवर्ड कर देती है.
"नलिनी, मोहित तो तेरे हाथों के हुनर पर सचमुच मोहित हो गए हैं. और
जानती है कल वह क्या कह रहे थे? बोले, नलिनी जी के हाथ कलाकार के हाथ हैं उनकी सुंदर उंगलियां
देखकर कोई भी यह समझ सकता है कि यह साधारण नहीं बल्कि किसी कलाकार की उंगलियाँ
हैं." अब नलिनी ने क्या सुना और कितना समझा, राम जाने. पर
अब वह पूजा की निकटतम सखी हो गई. फुर्सत मिलने पर बेवजह ही पूजा को सवांरने लगती
है और जो कभी नहीं हुआ वह अब हो रहा है कि निन्नी कभी-कभार रविवार को भी छुट्टी ले
लेती है ताकि वह पूजा को संवार सके.
हाँ, एक नई बात और हुई है, निन्नी ने अपनी
उँगलियों के नाख़ून बढ़ा लिए है जिन्हें वह सुघड़ता से आकार देकर रखती है, बिना
नेलपॉलिश के. कभी कभार अकेले में उन्हें प्यार से देखती है और पार्लर जाते समय समय
उचटती सी निगाह सडक पर वाली बालकनी पर भी डाल लेती है जहाँ कोई दिखाई नहीं देता, सिवाय
रविवार के.
लेकिन कहानी में जो नई बात हुई वो
रविवार को नहीं, मंगलवार को हुई.
उस दिन जब निन्नी पूजा के घर पर थी. दोनों पलंग पर पसरी गप्पें लगा रही थीं, नलिनी का दुपट्टा भी उसके गले से उतरकर पलंग पर पसरा है. “नलिनी,
मोहित सही कहते हैं, औरत को थोडा तो मांसल होना ही चाहिए. अब देख, तेरे ये कितने
अच्छे लगते हैं.” बातें करती पूजा की दृष्टि नलिनी के भारी (जरूरत से ज्यादा ही
भारी) वक्ष स्थल पर चिपक गई. अब निन्नी ने क्या सुना और कितना समझा ये आप समझें,
पर अब वह खुश रहने लगी है. भाई के मोटी कहकर चिढ़ाने पर उससे उलझ पड़ने की जगह शर्माने
लगी है.
निन्नी मोहित से ज्यादा बातें नहीं करती. कभी मोहित साधारण बात करता है तो
वह उसकी आंखों पर एक भरपूर दृष्टि डालकर नजरें झुकाए चुप रहती है या जरूरत जितनी
बातें करके चुप हो जाती है.
पाठको, मेरे उक्त विवरण से आपको किसी प्रेम कथा का भय लगने लगा होगा कि अब
वही पुराना, एक सीधी सी लड़की के बतरसिया के प्रेम में पड़ने और फिर दुःख पाने का
घिसापिटा, भावुक दुखड़ा सुनने को पढ़ने को मिलेगा. निश्चिंत रहें, ऐसा कुछ नहीं हुआ.
एक दिन एक ऐसा परिवार आया जो नलिनी के रूप पर नहीं, गुणों पर रीझ गया.
संस्कारी लोगों को संस्कारी नलिन इतनी पसंद आई कि वे बिना किसी मांग के उसे सगाई
की अंगूठी पहना गए. लड़का भी स्वाभाविक है कि संस्कारी था, उसने भी चुपचाप मां-बाप
की बात मान ली.
निन्नी तो पहले भी चुप रहती थी अब भी रही.
उससे न किसी ने राय मांगी न उसने दी. आप विश्वास कर ही लीजिए, बी ग्रेड शहरों के बी
ग्रेड परिवारों में ऐसे बी ग्रेड लड़के-लड़कियां अब भी पाए जाते हैं.
तो पारिवारिक हैसियत की सीमा में धूमधाम से विवाह हो गया. पूजा और मोहित भी
आए, अच्छा सा गिफ्ट लाए. सारे समय उपस्थित रहे, डोली के समय भी थे. विदाई के समय
मोहित ने उसके सिर पर हाथ रख कर स्नेह से कहा “नलिनी जी हमें भूल मत जाना.” और सब
के गले लग कर रोती-रुलाती निन्नी उर्फ अब श्रीमती नलिनी गौरव भारद्वाज फूलों से
सजी कार में बैठ कर पिया के देश, जी हां उसका विवाह नजदीकी बी ग्रेड शहर में हुआ
है, चली गई. और उसके बाद जो नया घटित हुआ वह उसी शहर में हुआ. निन्नी के द्वारा
नहीं, उसके पति के द्वारा सुहाग की रात को.
आधी रात गए, मध्यमवर्गीय परिवारों
में अब तक प्रचलित नेगचार पूरे करने के बाद घर की औरतों ने दूल्हा-दुल्हन को अकेला
छोड़ा. दूल्हे मियां की बेकरारी चरम पर है, अपने विवाह-सिद्ध अधिकार का उन्होंने
पहला फायदा उठाया. मुरझाए फूलों की पत्तियों से अटे पलंग पर सिमटी बैठी निन्नी का घूँघट
कायदे से उठाने की जरूरत उसके पति को शायद लगी ही नहीं या वह भूल गया, कौन जाने. निन्नी
से उसने बात की ही नहीं या निन्नी ने सुनी नहीं यह भी कोई नहीं जानता. हां, अंधेरे
में पसरी खामोशी में निन्नी ने एक वाक्य साफ-साफ सुना “तुम्हारा वजन बहुत ज्यादा
है, मुझे मोटी औरतें पसंद नहीं आती. अपना खाना-पीना काबू में कर के वजन घटाओ.” अब निन्नी
ने क्या सोचा यह वो जाने, लेकिन वह चुप थी और चुप रही. पर नई दुल्हनें तो चुप रहती
ही हैं, और रहने भी चाहिए इसीलिए पति ने भी इस पर खास तवज्जो नहीं दी.
अगली सुबह भी सामान्य सी ही थी. श्रीमती नलिनी
गौरव भारद्वाज नहा-धोकर मांग में सिंदूर और माथे पर छोटी सी बिंदी लगाए हल्की
गुलाबी साड़ी में निठल्ली सी बैठी है. उसका निठल्लापन शुद्ध अस्थाई है, नई बहू को
काम न करने देने की अवधि समाप्त होते ही उसका निठल्लापन भी स्वतः समाप्त हो जाएगा.
निन्नी के आसपास उसकी उम्र की कुछ लड़कियां-स्त्रियां बैठी हैं जो उसकी जेठानी-देवरानी,
ननदें वगैरह लगती हैं. अचानक कमरे में निन्नी के प्राणनाथ अर्थात पति परमेश्वर ने
प्रवेश किया, एक भरपूर नजर अपनी नयी ब्याहता पत्नी पर डाली और बदजायका सा मुंह
बनाते हुए एक खूबसूरत सी भावज से कहा “भाभी, इसे थोड़ा ठीक से रहना सिखाओ. कोई कह
सकता है कि यह नई दुल्हन है? इसके परिवार वाले तो इसे ब्यूटीशियन बताते हैं, पर मुझे
नहीं लगता कि इसे कुछ आता-जाता है.” कह कर पतिदेव तो गुस्से में पैर पटकते लौट गए,
पीछे कुछ तिरछी मुस्कानें देर तक ठहरी रहीं. इसके बाद नलिनी का किसने कैसा मेकअप
किया और क्या गहना-जेवर पहनाया, ये नलिनी सचमुच नहीं जानती, बल्कि सच तो यह है कि
उसे यह सब दिखा भी नहीं.
खैर, लोगों की आवाजाही, पैर छुआई और मुंह दिखाई में यह दिन भी बीत गया और
रात आ गई. फिर वही सुहाग भरी रात, जहां नव दंपत्ति अपने आवेग की आकुलता में दो से
एक हो जाने को व्याकुल हो जाते हैं.
पाठको, यह तो अब तक आप भी जान चुके होंगे
कि नलिनी ऐसे स्वभाव की लड़की नहीं है जो चंचल हो उठे और ना ही उसकी वर्तमान
स्थिति ऐसी है कि वह प्यार में पगला जाती. लेकिन जो होना होता है होकर रहता है, उस
रात भी हुआ. अब इस होनी के कारण में उस क्षण की भावुक रूमानियत जिम्मेदार रही या
उम्र के तकाजे से बेकाबू दैहिक प्यास की छटपटाहट, जो भी आप समझना चाहे समझ लें.
“क्या करती हो? मेरी पीठ उधेड़ दी. और ये कैसे जंगलियों जैसे
नाखून बढ़ा रखे हैं. ध्यान से सुन लो, सुबह इन्हें काट लेना.” कमरे की अंधेरी
ख़ामोशी में नलिनी नाथ की दर्द और झुंझलाहट भरी फुसफुसाहट कमरे में सरसराई. ये
सारी बातें नलिनी ने सुनी, ध्यान से सुनी. उसने बात समझी, पूरे ध्यान से समझी. और
फिर जो घटित हुआ वह आप समझ सकते हैं तो समझ लें, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा.
कई बार चरित्र लेखक की लेखनी के काबू बाहर हो जाते हैं, पढ़ा तो बहुत था, आज अनुभव
भी हो गया.
अगली सुबह श्रीमती
नलिनी गौरव भारद्वाज ने अपने समस्त प्रशिक्षण-कौशल को निचोड़ कर अपना मेकअप किया
हुआ है, नयनाभिराम केश-सज्जा और महंगी कांजीवरम साड़ी पहने हुए वह सचमुच बेहद
आकर्षक लग रही है. उसे देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये वही साधारण, लगभग असुंदर सी निन्नी थी.
जी, आपने ठीक ही पढा
है. ‘थी’ शब्द का ही प्रयोग किया है मैंने, क्योंकि निन्नी ने आज सुबह के किसी
वक्त आत्महत्या कर ली है. धारदार चाकू, कैची या ब्लेड जैसी किसी नुकीली वस्तु से
उसने अपनी कलाइयां काट ली थी. अपने सोलह सिंगार उसने इसके पहले ही कर लिये थे. दो
काम उसने और भी किए थे, एक तो अपने लंबे तराशे हुए नाखून लगभग अंगुलियों सहित काट लिए
थे और दूसरा उसी धारदार औजार से अपने पुष्ट वक्षस्थल को भी क्षत-विक्षत कर लिया था.
हां, अब आप कभी निन्नी को याद करें तो कह सकते हैं- ‘एक थी
लड़की’.
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डॉ. लक्ष्मी शर्मा गवर्नमेण्ट कॉलेज, मालपुर,ज़िला टोंक जयपुर में व्याख्याता हैं। उनका उपन्यास 'सिधपुर की भगतणें' साल 2017सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था। 'एक थी लड़की' कहानी "अक्सर" पत्रिका में साल2009 मेंछपी थी जिसे, हाल ही में फेसबुक पर सौंदर्य प्रतिमानों पर किसी वॉलपर एक बहस के बाद उन्होंने चोखेरेबाली के लिए भेजा।
2 comments:
ओह्ह् दी 😟😟
सन्न रहना इसे ही कहते हैं
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