- ---- शिखा परी
यह मह्ज़ थप्पड़ की गूँज नहीं थी।
उस दिन जब स्कूल से वापिस आयी तो ताऊजी छोटू के
लिए एक बड़ा सा एरोप्लेन लाये थे और मेरे लिए लाल छोटी - छोटी
चूड़ियाँ मैंने पूछा भी कि मेरे लिए एरोप्लेन क्यों नहीं लाये तो बोले तुम उड़ा नहीं
पाओगी।मुझे सुनके बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।
लड़की और लड़का की स्पेलिंग जब टीचर ने सिखाई थी
तब ये नहीं सिखाया था कि नहीं, नो
शब्द भी जुड़ते हैं लड़की के साथ ये फ़र्क किसी डिक्शनरी में भी मुझे नहीं दिखाई
दिया।
आज ताऊजी ने मुझे एरोप्लेन न देकर ये भी बताया
कि मैं नहीं उड़ा पाऊंगी इसे,मैंने
कुछ नहीं कहा और चूड़ियाँ भी उन्हें वापिस कर दी।
मैंने बहुत सारी किताबों में ढूँढा कि छोटू और
मुझमें क्या फ़र्क है?माँ भी बहला देती थी ,कुछ
बिना कहे जब थोड़ी और बड़ी हुई तो पिताजी को दुकान खाना देने छोटू जाता था वो हाफ
पेंट पहनकर दुकान चला जाता फिर पार्क में खेलकर आता देर रात,
मैं
घर में भी हाफ पैंट पहनती तो दादी गुस्सा होने लगती थी, मैं
दुकान नहीं जा सकती थी,थोड़ी
और बड़ी हुई तो अचार खाने से माँ और दादी ने रोका।
मुझे पता नहीं था कि लड़की होना और उसका बड़ा
होना लोगों को अखरता है . बगल के पवन भैया मुझे अजीब नज़रो से देखते थे एक दो बार छाती के
पास भी हाथ ले गए तो मैं सहम गई ,मुझे
समझ नहीं आया कि पवन भैया इतने कैसे बदल गए.इन्हें मेरे साथ ही खेलते देखा है
लेकिन सीने के पास हाथ क्यों ले जाने लगे हैं मेरे ,हाँ
मेरे सीने के पास. मेरा सीना उभरा था. थोड़ा मुझे समझ नहीं आया सीना तो इनके पास भी
है फिर ये खुद के सीने को क्यों नहीं स्पर्श करते?
मैं उभरे सीने में उलझ गई थी,
सोचा
दादी से कहूँगी तो वो मेरा खेलना भी बंद करवा देंगी।छोटू से कहूँ तो क्या वो
समझेगा?
हिम्मत करके माँ से कहा मुश्किल से,
वो
गुस्से से लाल थी पवन की माँ से उस दिन माँ ने बहुत लड़ाई की ।अब मैं और छोटू दोनों
पवन भैया के साथ नहीं खेलते थे।माँ से कई बार पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो माँ ने कुछ
नहीं बताया मुझे बोली लड़कियों के साथ होता है ऐसा, बेटी इसलिए तुझे मना किया था
हाफ पैंट में खेलने मत जाया कर।
ये भेड़िये सी भूखी दुनिया हम लड़कियों के लिए
कितनी भयानक थी समझ नहीं आती थी,दुनिया
तो लड़कों के लिए भयंकर हो सकती थी, पर
लड़कियों को ही ठीक से रहने के लिए कहा जाता है।मैं अब सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी
कि एक दिन मेरी सहेली की स्कर्ट पे मैंने खून से लतपथ धब्बे देखे मेरी चीख़ निकल
गई।मेरी चीख़ अकेली नहीं थी ,उस
चीख़ में मेरी सहेली की चीख़ और तेज़ थी जिसके स्कर्ट पे लाल धब्बे थे,
वो
ज़ोर ज़ोर से रो रही थी हम सब उसे देख रहे थे ।हम सबको लगा उसे कैंसर हो गया ।टीचर
ने शांत रहने को बोला लड़कों को क्लास से बाहर भेजा और उसकी मम्मी को बुलाकर उसे घर
भेज दिया ।मैंने मम्मी से घर आके बताया दादी ने सुन लिया बोली इसको गर्म चीजें
बिल्कुल न दो ,छोटू को दादी गोंद के लड्डू
खिलाती थी मैं माँगती तो आधा देकर भगा देती थी।मैंने माँ से शिकायत की पर दादी तो
लीडर थी घर की माँ की कहाँ हिम्मत होती थी, माँ
मुझे ही चुप कराती थी।
राखी पर हमेशा बुआ छोटू को सोने का लॉकेट देती
थी, मुझे 200 रुपए. मैं गुस्सा
हो जाती थी पर किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था।छोटू रूठ जाता तो पिताजी उसके लिए
समोसे लाते थे।
फिर वह दिन भी आया जब मेरी खुद की स्कर्ट पे
लाल धब्बे थे। मैं अब समझ गई थी कि ये मेरी
ज़िंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है लड़की और लड़के में ये एक ख़ास फ़र्क को खून के धब्बे
अलग करते थे।मेरी बचपन की सहेली चम्पा मुझसे अक्सर मिलने आती थी मैं और चम्पा ढेर
सारी बातें करते थे, नवीं
कक्षा में पहुँचे तो वो अक्सर आती थी, एक
दिन छोटू को मैंने चम्पा को हाथ लगाते खुद देखा मुझे तुरंत पवन भैया याद आ गए
मैंने छोटू के थप्पड़ रसीद दिया, उस
दिन पिताजी ने घर आकर मुझे बहुत सारी बातें सुनाई,मैं
कमरा बन्द करके रोती रही दो दिन तक ।मैं साईकल से स्कूल जाना चाहती थी पर जानती थी
पिताजी नहीं मानेंगे ,पिताजी ने छोटू के
साथ रिक्शे से जाने के लिए हिदायत दी मैंने बहुत मिन्नतें की पर पिताजी नहीं माने
।
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ईस्टर एग गर्ल शीर्षक यह चित्र इंटरनेट से साभार |
मैं अब समझ गई थी कि ये मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है लड़की और लड़के में ये एक ख़ास फ़र्क को खून के धब्बे अलग करते थे।
उस दिन गाँव से ताऊजी आये थे बोले बहुत मोटी
हो रही हो, कुछ कम खाया करो मैं
सोचने भी लगी कि घी के लड्डू, दाल
में घी डालके तो छोटू खाता है मैं तो वो भी नहीं फिर मैं अपने बढ़ते वज़न के लिए
ज़्यादा कैसे खाने लगी?
चम्पा से मेरा मिलना अब बन्द हो गया था,
चम्पा
ने मुझसे माफी मांगी उसे लगा उसकी वजह से छोटू और पिताजी से मेरी लड़ाई हो गई पर
ऐसा नहीं था। छोटू को थप्पड़ रसीद के मैंने अपने दिल को ठंडक पहुंचाई थी,
ऐसा
लगा जैसे सारे पवन भैयाओं को जड़ा था मैंने वह थप्पड़। चम्पा को समझाया।
सभी सहेलियाँ पिकनिक के लिए बाहर घूमने जा रही
थी, मैंने पिताजी से मुश्किलों
से आग्रह किया कि वो मुझे बाहर जाने दे ये इंटर की आखिरी पिकनिक थी हम सब दोस्त
इसके बाद कभी नहीं मिलते. संयोग से छोटू की कक्षा भी हमारे साथ उसी पिकनिक में
गई।पिकनिक पे हमने बहुत मस्ती की खूब मजे मारे, लेकिन
एक दिन जिसदिन वापिस आना था ,उसी
दिन शाम को चम्पा के साथ छोटू ज़बरदस्ती करते हुए पकड़ा गया मैं तुरंत चम्पा के साथ
खड़ी हो गई।
छोटू नफरत भरी आँखों से मुझे देख रहा था,
मैंने
चम्पा को पूरा सपोर्ट किया और प्रिंसीपल से छोटू को सख्त से सख्त सज़ा देने की
रिक्वेस्ट भी की।
पिताजी ने घर आकर मुझे बहुत बातें सुनाई,
दादी
ने कहा एक ही भाई है तेरा कौन पूछेगा तुझे भाई की दुश्मन बन जाएगी तो ?
मुझे समझ नहीं आया कि छोटू ने चम्पा के साथ जो
किया उसके लिए हर सज़ा कम थी लेकिन पिताजी और दादी लड़की लड़का की उस मात्रा को समझा
रहे थे मुझे।मैं अब बाग़ी हो चुकी थी ,मैंने
उस दिन पहली बार पिताजी और दादी से बहस की ,दादी
तुरंत बोली पढ़ना बेकार था इस लड़की का।मैंने समझ लिया था कि अब हर चीज़ जो एक लड़की
करती है वो बुरी ही होती है।छोटू मुझसे बहुत बुरी तरह नाराज़ हो गया था।
मैं बाहर पढ़ना चाहती थी पर फिर से घर में अपनी
एक लड़ाई लड़ी।बाहर पढ़ने गई नए दोस्त मिले और मुझे अपना करीबी दोस्त भी मिला हमने
शादी के ढेर सारे सपने सजा लिए थे,लेकिन
उससे पहले ही पिताजी ने छोटू के कहने पर एक जगह मेरी शादी तय कर दी।मैंने मिन्नतें
की लेकिन पिताजी को न नहीं कर पाई।शादी हुई और वो सब हुआ जो एक स्त्री जिसके लिए
जन्म लेती है मैं माँ बनने वाली थी मेरे पति अच्छे थे या नहीं मुझे समझ नहीं आता
था उन्हें मेरा कहीं आना जाना बात करना पसंद नहीं था।मैंने एक बेटी को जन्म दिया,
मैं
बहुत खुश थी लेकिन मेरी सास और पति उतने खुश नहीं हुए।पति मुझसे रात को जानवरों
जैसा बर्ताव करते थे, मैं
चुपचाप अपने शरीर पे निशान बनवाती, माँ
से कहती तो वो बोलती बेटा किस्मत है क्या कर सकते हैं धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा।
धीरे धीरे मैं अपनी बेटी को बढ़ते देखने लगी,
मैं
फिर से गर्भवती थी ,शरीर जवाब देने लगा
था अब दूसरा बच्चा बच नहीं पाया।मेरे पति की नफ़रत और सास का रूखापन दोनों का
पैमाना बढ़ गया था।मैं एक अच्छी औरत नहीं, लड़की
को जन्म देने से क्या फ़ायदा?वो
वंश नहीं चला पाएगी
ये सारे ताने दिल में छेद कर रहे थे लगातार।
मेरी बेटी शुरू से दादी के रूखेपन को जीती हुई
बड़ी होती गई, जेठ के बेटे को मेरे
पति खूब प्यार करते और मेरी बेटी से हमेशा कहते भाई है तेरा माना कर उसे।मुझे अपनी
और छोटू की उस लड़ाई, खींच
तान याद आने लगी।मैंने ठान लिया कि मेरी बेटी कोई मामूली बेटी नहीं ये साबित कर के
रहूँगी।
मेरी बेटी के अंदर एक आग थी वही आग जो मेरे
अंदर सुलगती रहती थी।
वह दिन रात पढ़ती और इतना पढ़ती कि मुझे उससे कहना
होता कि बस कर।पर उसके अंदर तो जैसे ज्वाला थी बहुत तेज ज्वाला।उस साल आई आई टी
में सेलेक्शन हुआ मेरी बेटी का।मैं खुशी से पागल हो गई थी।पर अभी भी मेरे पति खुश
नहीं थे,उनका मानना था क्या कर लेगी ?इतना
पढ़के भी। उसकी दादी तो और सुलग गयीं थी।
उसका दाखिला हुआ।फिर इंजीनियरिंग। मेरी बेटी
ने इसरो का फॉर्म भरने और चुने जाकर हम सब को चौंका दिया।मैं रोने लगी ,खुशी
के मारे पागल हो गई थी। मन ही मन उसे चाँद पर भेजने की तैयारी कर ली।
उसके
दीक्षांत समारोह में मेरे अपने ताऊजी भी शामिल होने आए,मेरे
बगल में बैठे सकुचाते हुए जैसे कुछ बोले बेटा तुझे याद है मैंने तुझे एक बार
एरोप्लाने न देकर चूड़ियाँ दी थी... वे आगे कुछ और भी कहना चाहते थे लेकिन मेरे
लिए वह सब सुनना अब कोई मानी नहीं रखता था। मैंने बिना आगे सुने खुद बेटी के साथ
चल दी स्टेज पर।
हम माँ-बेटी मंच से जो जवाब दे
रहे थे उसकी गूंज न सिर्फ ताऊजी को अवाक कर गई बल्कि आगे की कई पीढियों तक सुनाई देने
वाली थी।
3 comments:
Very nice story l love your story very much
बेहतरीन कहानी
बहुत सुंदर कहानी, अंतर्मन को झकझोर गयी।
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