- मृदुला शुक्ल
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पेंटिंग यहाँ से साभार |
अपनी
क्रिस्टल शील्ड को टेबल पर रखते हुए वरून ने उसे गोद में उठा लिया था”हम जीत गए
माँ हम जीत गए”कहते हुए उसने उसे पूरा एक गोल चक्कर घुमा दिया था। वह ख़ुशी और भय
के मिले जुले भाव से बेटे के गले लगी हुई थी उतार ! "मुझे नीचे उतार वो
बनावटी गुस्से से चिल्लाई थी" “नहीं बिलकुल नहीं” कहते हुए वरुण ने माँ को
देखा अरे मुझे पीठ में दर्द हो जाएगा वरुण ने माँ का चेहरा देखा उसे महसूस हुआ माँ
को ज्यादा ही घुमा दिया है ,अच्छा बाबा लो! कहते हुए वरुण ने
उसे बगल में पड़े बेड पर बिठा दिया और उसके गले में हाथ डाल उसके पास बैठ गया ।
अचानक वरुण का हाथ घूमा और वह उसे गुदगुदाने लगा कमर के आस पास वरुण का हाथ तेजी
से घूम रहा था यह बचपन से उसका प्रिय खेल था वह जब भी खुश होता माँ को गुदगुदा
देता। जाने कहाँ थी वह जोर से खिलखिलाते हुए वे दोनों बेड पर लोट पोट हो गए|
माँ ! वरुण चीखा था, " माँ देखो तुम हंस
रही हो" "तुम्हे गुदगुदी लग रही है देखो माँ तुम्हे गुदगुदी लगती है
बचपन से तुम झूठ बोलती रही हो, तुम्हे भी गुदगुदी लगती है
माँ तुम्हे भी गुदगुदी लगती है " वरुण आश्चर्य से चीख रहा था वो अचानक शांत
हो गयी। एकदम शांत
"क्या
हुआ माँ तुम चुप क्यों हो गयी "
"कुछ
नहीं रे तू भी न जाने कब बड़ा होगा जा जल्दी नहा ले "
"देख
पसीने से लथपथ है मुझे भी पूरा गन्दा कर दिया" उसने दुपट्टे से खुद का माथा
पोछते हुये कहा |
वरुण माँ
के चेहरे के बदले हुए भाव को आश्चर्य से देख रहा था जा नहा न मैं दूध गर्म करती
हूँ वो जानबूझ कर अनजान बनते हुए किचन की और मुड़ गयी। दूध के पैकेट फ्रिज में रखे
थे उसने फ्रिज खोला और याद ही न आये फ्रिज क्यूँ खोला फ्रिज बंद कर वो किचन में आ
गयी । माँ तुम्हे गुदगुदी क्यो नहीं लगती नन्हा वरुण उसके पेट पर हाथ फिराते हुए
पूछ रहा था। माँ स्किन भी तो हमारी सेंसरी ऑर्गन है न ? आज वरुण को साइंस की क्लास में सेंसरी ऑर्गन पढाया जा रहा था । "हाँ
बेटा है तो सेंसरी ऑर्गन " फिर माँ आपका सेंसरी ऑर्गन प्रोपरली काम क्यों
नहीं करता ,भगवान् जी ने लोकल लगा दिया था क्या? वह मुस्कुरा दी ये तूने कहाँ से सीखा रे उसने वरुण का कान पकड़ते हुए कहा।
अरे मां तुम ही तो प्लंबर से बहस कर रही थी की उसने लोकल पार्ट लगा दिए हैं और वो
काम नहीं कर रहे उसने माथा पीट लिया था वरुण के भोलेपन पर ।
माँ दूध बन
गया क्या? जरा मेरा प्रोटीन तैयार कर देना मुझे जिम जाना है ।
वह झटके से वर्तमान में लौट आई थी उसे याद आया वो फ्रिज से दूध निकालने गयी थी
हड़बड़ी में उसने फ्रिज से दूध निकाला प्रोटीन तैयार करने लगी। वरुण तैयार हो रहा था
आज के मैच की जीत उसके दिमाग पर सवार थी वो झूमते हुए कुछ गुनगुना रहा था । हडबडी
में दूध पीते हुए वो जाने किस दुनिया में था घर से निकलते हुये वरुण ने उसके गालों
को चूम मुस्कुराते हुए कहा “आई लव यू माँ” और और अपनी जीभ निकाल कर उसके गालो पर
छुआ दी थी उसे सिहरन हुई थी हलकी मीठी सी उसने दुपट्टे से रगड़ कर गाल पोछते हुए
कहा । जा भाग ! अब नहीं हो रही तुझे देर ।
वरुण भागता
हुआ सीढियां उतर गया था वह थके कदमो से लौट रही थी अपने कमरे की तरफ माँ तुम्हारे
सेंसरी ऑर्गन खराब हैं क्या ?भगवान् जी ने लोकल लगा दिए थे
क्या? वह मुस्कुरा दी थी माँ तुम्हे गुदगुदी लग रही देखो माँ
तुम हंस रही हो। स्टेच्यु बोल कर सामने वाले को जड़वत खड़ा कर देना बचपन का प्रिय
खेल था उस पूरी टोली का आसिमा गौरी शबनम और रेखा वे सब कभी किसी को रास्ते में
कहीं भी स्टेच्यु बोल खड़ा कर दिया करते थे और फिर एक दूसरे को हवा में हाथ हिला
हिला कर गुदगुदी करते सब तो खुद को संभाल लेते मगर वो हर बार हवा में लहराते हाथ
देख जोर से हंस पड़ती फिर पूरे घर में भागते हुए वे सब जोर जोर से हंसते । दादी
भुनभुनाती “ई बैसैया मोहि न भावे सींक डोले हंसी आवे” दादी को देख वे थोडा सहम
जाती मगर एक दिन दादी को डांटने के बाद पीछे पलट कर आंचल में मुंह छुपा कर हँसते
हुए देख लिया फिर क्या था उस दिन से लडकियां दादी की डांट खाकर भी उनके सामने से
खिलखिलाते हुए भागती थी । उसने दुपट्टा ओढना शुरू कर दिया था माँ कहती थी बाहर
जाते हुए चुन्नी लिया करो तन कर मत चला कर गर्दन नीची करके चलती हैं अच्छे घर की
बेटियाँ । उसे मानी नहीं पता थे इन बातो के मगर माँ कहती थी तो जरुर कुछ होगा उन
दिनों सवाल जवाब भी नहीं होते थे अच्छे घर की बेटियाँ सवाल जवाब भी कहाँ करती थी|
ठण्ड के
दिन शुरू हो रहे थे बडका नाउन दिनभर धूप में बैठ कथरी सिला करती थी माँ की पुरानी
साड़ियाँ और और पुरानी चादरे सब टुकड़ों में फाड़ कर छत पर फैला दिया करते थी फिर एक
आकार के कपड़ों को जोड़ हर शाम एक कथरी तैयार हो जाती थी । शाम को घर जाते हुए बड़का
नाउन के हाथ में माँ का दिया सीधा होता साथ ही कुछ पैसे भी और फिर बड़का नाउन कम
पैसे में किये काम को टुकड़ों में कभी दाल तो कभी नून मांग कर पूरा कर लेती थी
बच्चे वही कथरी बिछाते और ज्यादा सर्दी बढ़ जाने पर उस पर गांधी आश्रम से आये कम्बल
बिछा दिए जाते थे मेहमानों के लिए झक्क सफ़ेद चादरों वाले दो बिस्तर थे जिन पर सफ़ेद
मारकीन के नील लगे कवर चढ़े होते थे सारे बच्चे एक कमरे के चार तख्तों पर सोते थे| वो मेहमानों वाला बिस्तर बाहर बरामदे में डला रहता था बरामदा बच्चों के
कमरे के ठीक बाहर था उन दिनों ताऊ जी आये हुए थे सारे बच्चो के साथ वो कमरे में
सोने आ गयी थी ताऊ जी ने उसे अपनी आँख में दवा डालने को बुलाया उसने एक आँख में
दवा डाली और ताऊ जी के बिस्तर पर बैठ ऊँघने लगी थी ताऊ जी ने उसे रजाई में आने को
बोला" ठण्ड बहुत है बच्ची आ अंदर बैठ जा "वो बैठ गयी थी “अभी जरा रुक के
दूसरी आँख में डालना तब तक लेट जा यहीं” उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था मगर बुरा
क्या था वो समझ नहीं पायी । वह ताऊ जी के बगल लेट गयी थी, थोड़ी
देर बाद उसने पूछा अब डाल दूँ ताऊ जी मुझे नींद आने लगी है ,रुक
न अभी आराम से डाल देना ताऊ ने धीरे से फुसफुसा के कहा था उसे झपकी आ गयी थी अचानक
से नीद खुली तो ताऊ के हाथ उसके कमीज के अंदर थे वे धीरे धीरे हाथ को नीचे ले जा
रहे थे । माँ ने कहा था यहाँ कोई छुवे तो पाप होता है कोई देखे तब भी इसलिए तो
चुन्नी ओढती हैं लडकियां। वो, बर्फ सी जमती जा रही थी चीखना
चाह कर भी चीख नहीं पा रही थी माँ ने कहा था पाप होने से माँ मर जाती है भय से
कांपते हुए वह उठ कर भागना चाहती थी ताऊ जी उसे बेतहाशा चूमे जा रहे थे गर्दन पर
छातियों पर होठों पर | अब वह जब भी स्टेच्यु बनती आसिमा गौरी
शबनम रेखा उसे दूर से गुदगुदी लगाने की कोशिश करते उसे हंसी न आती सारे बच्चो में
एक बात मशहूर हो गयी थी उसने गुदगुदी पर कंट्रोल कर लिया है ।
सब बच्चे
जानना चाहते थे की वह ऐसा कैसे कर पायी ,स्टेच्यु के ओवर
होते ही वो सब उसे मिलकर गुदगुदाते वो बुत बनी खड़ी रहती ,घर
लौटते हुए बच्चे उसके बारे में बात करते कैसे बहादुरी से उसने अपनी गुदुगुदी पर
कंट्रोल कर लिया है अब उसे स्टेच्यु में कोई नहीं हरा सकता । ताऊ जी को देखते ही
वह सुन्न हो जाती वे हर बार वही सब दुहराने की कोशिश करते जरा सा एकांत पाते ही वो
अपने हाथों और होंठो से उसकी देह टटोल डालते वो पहले सुन्न हुई फिर और,फिर और सुन्न होती चली गयी | आस पास पापा थे भाई थे
चचेरे ममेरे फुफेरे उनके दोस्त थे बारहवी तक वो गर्ल्स स्कूल में पढ़ी थी कॉलेज में
उसके साथ तमाम लडके थे अजीब भय और वितृष्णा से भरी रहती थी वह हर वक्त साथ पढने
वालो लड़कों से ऐसे बचा कर चलती कोई असावधानी से उसकी चुन्नी तक न छू ले | बड़े भैया के दोस्त मधुकर उसके घर खूब आते थे साथ बैठना खाना पीना गप्पे
मारना वो हमेशा सहमी सी रहती मधुकर उससे खूब बातें करता | धीरे
धीरे वो मधुकर के साथ सहज होने लगी थी मधुकर का हंसोड़ पन उसे अच्छा लगता था उसके
सुनाए चुटुकलों पर वो मुस्कुरा देती है मधुकर बहुत अच्छी मिमिक्री करता था वो पूरे
परिवार में बाबूजी से लेकर ताऊ जी सबकी नकल उतारता था वह खूब हंसती मगर ताऊ जी का
जिक्र आते ही वो उठ कर चली जाती, इतने बड़े परिवार में किसके
पास वक्त था उसके व्यवहार में हुए बदलाव को महसूस करना | मधुकर
उसमें खूब रूचि लेने लगा था ज्यादातर उसी वक्त आता जब वो घर में रहती दोनों खूब
बातें करते हंसते खेलते कभी कैरम कभी लूडो । सभी भाई बहन इकट्ठे हों तब
अन्त्याक्षरी, दोनों हर बार एक ही टीम होते साथ हारते साथ
जीतते मधुकर को महसूस होने लगा था कि वह उसमे रूचि लेने लगी है दोनों आँखों ही
आँखों में एक दुसरे से बात करने लगे फिल्मो में प्रेम के दृश्य अब उसे खूबसूरत
लगने लगे । फ़िल्मी गानों में जब दो फूल एक दूसरे को चूमते तो उसे सिहरन हो जाती ।
गर्मियों की शाम थी बिजली नहीं होने के कारण सब लोग छत पर बैठे हुए थे थोडा अँधेरा
सा घिर गया माँ ने उसे रसोई में हाथ बटाने के लिए नीचे से आवाज दी वह आखिरी सीढ़ी
उतरने ही वाली थी की सामने मधुकर खड़ा था वो चीख पडती इससे पहले ही मधुकर उसके हाथ
में एक पुर्जा पकड़ा कर गाएब हो गया वो भाग कर रसोई में आ चुकी थी उसने पुर्जे को
चुपचाप अपनी कमीज में रख लिया था रात का सारा काम समेट माँ अपने कमरे में सोने चली
गयी | सब बच्चे अपने पढ़ाई में लग गए थे वह भी अपने कुर्सी पर
पढने के लिए बैठी मन तो कहीं और अटका हुआ था उसने धीरे से अपनों कमीज़ से वो पुर्जा
निकाला और धडकते दिल के साथ खोला बस तीन अक्षर लिखे थे “आई लव यू” उसका दिल जोर
जोर से धडकने लगा था उसने पुर्जे पर लिखी इबारत पर बेतरतीबी से पेन चला कर उसे ऐसा
कर दिया कि उसे कोई और न पढ़ पाए रात भर जागती रही सुबह के जाने किस पहर में उसे
नींद आई होगी सुबह मधुकर आया उसे देख गहरा सा मुस्कुराया उसका दिल धक् धक् करने लगा
।
इन दिनों
वो अपने बालों पर चेहरे पर ख़ूब ध्यान देने लगी थी उसकी मुस्कान गुलाबी गहरी हो गयी
थी मधुकर को सामने देख उसका चेहरा रक्ताभ हो जाता वह उसके सामने पड़ने से बचने लगी
थी मधुकर बहाने ढूंढ ढूंढ कर उसके आस पास ही बना रहता था उस शाम सब नीचे खाने जा
चुके मधुकर को भी माँ बुलाये जा रही थी मगर उसने कहा माँ मुझे भूख नहीं है मधुकर
अकेला छत्त पर लेटा हुआ था| दादी ने उसे खाना खाते देख कर कहा ऊपर जाकर मधुकर की
मदद से उनका बिस्तर लगा कर मच्छरदानी लगा दे । वह अपने मस्ती में उछलती कूदती छत
पर आ गयी चारपाई बिछाकर कर उस पर बिस्तर बिछाने लगी अचानक मधुकर उठा और धीरे से
जाकर उसे पीछे से पकड लिया वह धीरे से कसमसाई अचानक मधुकर ने अपने होंठ उसकी गर्दन
पर रख दिए। जोर से चीखी थी वह बहुत जोर से, इतनी कि पूरा
परिवार एक साथ छत की ओर भागा सब डर गए थे सबसे ज्यादा मधुकर डरा हुआ था वो बैठकर
चीखे जा रही थी साथ ही साथ उल्टियां कर रही थी सब घबराए हुए से पूछ रहे थे उसे
क्या हुआ वह कुछ बोलने की हालत में नहीं थी माँ ने उसे लिटाया खुद उसके साथ लेट कर
रात भर उसका माथा सहलाती रही। इधर मधुकर को मारे घबराहट के नींद नहीं आई वो रात भर
इस कल्पना से भयभीत होता रहा की अगर घर वालो को सच मालूम हुआ तो वो उसका क्या हाल
बनायेगें सुबह सब उससे पूछते रहे की आखिर क्या हुआ था । वो क्यूँ चीखी ?वो किससे डर गयी थी ? लेकिन वो शांत बनी रही जब शाम
तक घर में कोई हंगामा नहीं हुआ तब मधुकर घबराते घबराते उसके घर आया। उसके मन में
अनेक सवाल थे वो सब कुछ जानना चाहता था मगर मारे डर के वो चुप रहा धीरे धीरे उसने
वहां आना कम किया और फिर लगभग बंद ही कर दिया ।
उसकी शादी
तय हो चुकी थी जैसे जैसे शादी की तारीख पास आ रही थी उसकी घबराहट बढती जा रही थी
भाभियों की ठिठोली उसे गुदगुदाती नहीं उसे पसीना चुचुआ आता था ये सोचने भर से की
आगे का जीवन उसे किसी पुरुष के साथ बिताना है ,साथ सोना हैं ये सोच
कर ही उसे मितली आने लगती थी प्रेम सहवास तक तो वो कभी सोच भी नहीं पाती थी शादी
के बाद प्रशांत के दुलारते हाथ उसे सुन्न कर देते शांत ठहरी हुई नदी सी दिखने वाली
वो दरअसल जमी हुई थी ठंडी बर्फ से भी ठंडी ,जितनी बार छुई
जाती उतनी जमती जाती देह, हर अन्तरंग स्पर्श उसे ठंडे पन की
ओर ही ले जाता था| दिन भर हंसती खेलती वो शाम होते ही उलझन
से घिर जाती रात उसे डराती थी दिन भर सोचती रहती थी कोई ऐसा था ही नहीं जिससे बात
कर पाए | वो अपने आस पास की औरतों को देखती वे कितनी खुश
दिखती थी रात का बिस्तर का जिक्र आते ही ,उनके गाल लाल हो
जाते उसकी बड़ी जेठानी भी जेठ जी का नाम और फिर रात का जिक्र आते दुल्हन सी शरमा
जाती थी । वो नई दुल्हन थी प्रशांत एक प्रेमिल पति ,प्रशांत
उसे दिनभर खुश रखने की कोशिश करता उसके आसपास मंडराता रहता हंसी ठिठोली करता एकांत
पाते ही चूम लेता गालों पर चुटकी ले लेता वो बुत की तरह खड़ी कभी कभी उदास सी
मुस्कुरा देती|
धीर गम्भीर
शांत सी वो घर में सबकी लाडली थी सब उसका बहुत ख्याल रखते प्रशांत भी धीरज से उसके
साथ रहते उसका बिस्तर पर असहज होना प्रशांत को चुभता था ,वो हर रात उससे उसके पिछले जीवन के बारे में घुमा फिर कर पूछते एक रात
प्रशांत ने उससे सीधा प्रश्न किया | “क्या तुम्हारी शादी
मुझसे जबरदस्ती हुई है तुम किसी और से प्रेम वेम तो नहीं करती थी ,जिस तरह से तुम मेरे छूते ही सुन्न हो जाती हो लगता तो ऐसा ही मैं तुम्हे
बेहद नापसंद हूँ ,मुझे बहुत आत्मग्लानि होती है लगता है जैसे
तुम्हारे साथ अन्याय हो रहा है तुम मुझे कहो तो सही हम मिलकर कोई रास्ता निकालेंगे
तुम दिन भर कितनी अच्छी रहती हो, कितना ख्याल रखती हो मेरा
घर का। माँ पापा भाई भाभी सब कितने खुश हैं तुमसे, दोस्तों
ने मुझे कितना डराया था की पत्नियों के आते से परिवार में तनाव हो जाता है माँ
पापा भाई बहनो से रिश्ते खराब हो जाते हैं ।यहाँ तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ मेरा खुद
से ही भरोसा उठने लगा है कई बार मुझे लगता है मुझमे ही कोई कमी है मैं तुम्हे खुश
नहीं रख पा रहा मैं जगा नहीं पा रहा हूँ तुम्हारी सोयी हुई देह को । वो सुबकने लगी
प्रशांत उसे चुप कराते रहे और फिर दोनों अपने अपने किनारों पर सो गए उसे समझ आता
था कि उसके साथ कोई दिक्कत है वो नार्मल नहीं है कई बार अपने चरम पर पहुंचा
प्रशांत उसे परे धकेल कर कहता तुम लाश सी पड़ी रहती हो लगता है मैं जैसे तुम्हारे
साथ बलात्कार कर रहा हूँ । प्रशांत अपना तकिया उठाते और दूसरे कमरे में सोने चले
जाते ,धीरे धीरे प्रशांत अक्सर बाहर वाले कमरे में सोने लगे
कभी कभार वो रात को जाती मनुहार करके उन्हें अपने पास ले आती मगर क्या करती अपनी
ठन्डी पड़ी देह का। ननदों जेठानियों से सुनते सुनते वो इतना तो सीख चुकी थी की
पत्नी बिस्तर में साथ कैसे देती है कई बार उत्तेजना का अभिनय करती हर बार पकड़ी
जाती वो सर्दियों की छुट्टियां थी माँ पापा मामा के घर गए हुए थी भाई भाभी ऑफिस की
तरफ से मिली छुट्टियां मनाने परिवार सहित बाहर गए थे प्रशांत के मन में आया की आज
इसे ब्लू फिल्म दिखाई जाए शायद इसे कुछ फर्क पड़े। भूमिका बांधते हुए प्रशांत ने
उससे पूछा सुनो तुमने कभी ब्लू फिल्म देखी है ? उसने नहीं
में गर्दन हिला दी सुना है उसके बारे में उसने संकोच से कहा कहा हाँ उसमे गन्दी
तस्वीरें होती है । गन्दी तस्वीरें नहीं उसमे प्यार करते आदमी औरत होते हैं आदमी
और औरत की देह अलग होती है, इस तरह आदमी और औरत मिलकर एक
दूसरे की देह को और अच्छे से जानते हैं छूते हैं समझते हैं| तुम
देखोगी ब्लू फिल्म ? उसने नहीं में सर हिला दिया था |
प्रशांत ने उसका हाथ पकडकर खुद के पास बिठा लिया था । अगर मैं कहूँ
तब भी नहीं देखोगी? मेरे साथ तो देख सकती हो न उसने धीरे से
स्वीकार में सर हिलाया प्रशांत ने पहले से ही अपने कमरे में पूरी तैयारी कर रखी थी
पहली फिल्म जवान जोड़े की थी वो आँखे फाड़े देख रही थी उनके क्रियाकलाप, दिन के उजाले में पति को देख शरमा भी रही थी प्रशांत उसके शरमा कर लाल हो
गए गालों को देख उम्मीद से भर उठा था । प्रशांत ने रिमोट से अगली फिल्म ऑन कर उसे
अपनी तरफ खींच लिया था वो आँखे स्क्रीन पर जमाए हुए थी। अचानक वो जोर से चीख कर उठ
खड़ी लगभग भागती हुई सी कमरे से बाहर निकल गयी वो थरथर काँप रही थी उसे उल्टियां
होने लगी प्रशांत उसके पीछे भागा वो आंगन में खड़ी उल्टी कर रही थी प्रशांत ने उसे
पानी दिया संभाल कर कमरे में ले आया टी वी बंद कर दिया था।
प्रशांत का
मन उलझ गया था उसे समझ नहीं आ रहा था कि अचानक से उसे क्या हो गया वो चीख कर भागी
क्यूँ उसे उल्टियां क्यूँ होने लगी प्रशांत उसके सोने का इंतजार करने लगा वह उसके
बाल सहला रहा था धीरे धीरे धीरे उसे गहरी नीद आ गयी प्रशांत ने फिर से वो विडियो
प्ले किया एक अधेढ़ सा आदमी का एक बहुत कम उम्र की लड़की के साथ सेक्स का विडियो था
प्रशांत को कुछ समझ नहीं आ रहा था उसकी पत्नी अचानक चीख क्यूँ पड़ी वह बार बार
रिवाइंड करता उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसने सोचा की लड़की की सिसकारी को दर्द
भरी चीख समझ कर वो डर गयी होगी। प्रशांत ने मन ही मन निश्चय किया वो उसे इसके बारे
में समझाएगा सेक्स से सम्बंधित जो भी उलझने हैं उस पर उससे बात जरुर करेगा अपना घर
बचाए रखने के लिए दृढ संकल्पित था प्रशांत बाहर से माँ की आवाज आ रही थी शायद घर
वाले लौट आये थे प्रशांत ने सबको बता दिया था की उसकी तबियत ठीक नहीं आज दिन में
उसे उल्टियां हुई थी उल्टियों के नाम से सब उम्मीद से मुस्कुरा पड़े थे। डॉ ने उसकी
रिपोर्ट पोसिटिव बताई थी,घर में ख़ुशी का माहौल था प्रशांत पिता बनने के अनूठे
अहसास से भरा हुआ था माँ पापा भाई भाभी सब उसका बहुत ख्याल रखते थे । प्रशांत के
मन में पत्नी की उदासीनता खटकती रहती थी जिस रात उनके बीच सेक्स होता वो दिन भर
अनमनी से दिखती प्रशांत अपराधबोध से भर जाता उसका बहुत मन हो फिर भी वो कई कई दिन
तक उसे हाथ न लगाता ।अनमना सा होकर अक्सर बाहर के कमरे में सोने लगा था प्रशांत ने
घुमा फिरा कर कुछ मित्रों से बात की सब यही कहते कुछ नहीं यार बीबियाँ नखरे करते
हैं उन्हें भीतर भीतर सब अच्छा लगता है ।एक थोडा समझदार दोस्त ने कहा यार सेक्स को
लेकर अपने परम्परागत परिवारों में इतनी नेगेटिव बातें की जाती हैं की लडकियां इसे
गन्दा काम मानने लगती हैं और उनकी रूचि खतम हो जाती है,अगर
रूचि बनी भी रहे तो खुलकर व्यक्त करना गन्दी स्त्रियों का काम मानती है एक और
मित्र ने कहा वो मर्द कौन सा जो औरत को गरमा ने दे तुम थोडा शिलाजीत व् बादाम वदाम
घोटो भाई । प्रशांत बेहद परेशान था हर वक्त उलझा सा रहता।पिता बनने की ख़ुशी भी उसे
तसल्ली नहीं दे पाती थी उसका खुद से भरोसा उठने लगा था वो अक्सर रात को खुद को
टटोल कर देखता क्या सचमुच उसमे कुछ कमी है अपनी पत्नी को खुश नहीं रख पा रहा है
प्रशांत का मन भटकने लगा था वो अक्सर पेड सेक्स के बारे में भी सोचता रहता था वरुण
का जन्म हुआ घर उल्लास से भर गया था माँ ने जन्मकुंडली दिखवाई थी ज्योतिषी ने कहा
नवजात मूल नक्षत्र में हुआ था पूरे सताईस दिन तक उसे अपने कमरे से बाहर सोना था
पिता पर भारी थे उसके ग्रह नक्षत्र वो मूल पूजन के बाद ही अपने बेटे को देख सकता
था । घर में रिश्तेदारों मेहमानों का आना जाना लगा था माँ और बच्चे की खूब देखभाल
हो रही थी ।प्रशांत गुलाबी होती थोड़ी सी भर आई पत्नी को दूर से देख मुग्ध होता
रहता था माँ जच्चा बच्चा के कमरे में सोने लगी थी प्रशांत की कमरे में जाने की
मनाही थी। नन्हा शिशु उसके बगल में लेटा रहता उसके छोटे छोटे हाथ पैर उसे छू जाते
तो उसे लगता उसके बेजान सी में देह जान आने लगी है कपडे उतार उसकी मालिश करती उसकी
देह उसका अपना हिस्सा है ये सोच कर अजीब मीठे अहसास से भर जाती, वो जीने लगी थी जागने लगी थी उसकी देह ,पुरुष देह के
प्रति मन में बैठी जुगुप्सा स्नेह में बदलने लगी । बच्चे के सत्तीसा पूजने का दिन
नजदीक आ गया था घर मेहमानों से भरने लगा था कई दिनों से उसकी प्रशांत से मुलाक़ात
नहीं हुई थी दिन भर कमरे में मेहमान बैठे रहते उसका बड़ा मन करने लगा था प्रशांत से
बात करने का चुपचाप उसके गले लगने का । अगले दिन सताईसा पूजा जाना था और उसके
दूसरे दिन बड़ा सा भोज रखा था बाबू जी ने उसे पता था की दो तीन दिन तक तो उसकी
मुलाक़ात प्रशांत से होने से रही ।
रात माँ के
सो जाने के बाद वो चुपचाप उठी आज उसे प्रशांत को शुक्रिया कहना था प्रेम के लिए
भरोसे के लिए वो सब कुछ जो उसके जीवन में खिला खिला सा है उजला उजला सा है हर उस
बात के लिए। चुपचाप दबे कदमो से प्रशांत के कमरे की तरफ बढ़ रही थी प्रशांत का
दरवाजा भीतर से बंद था उसने सोचा खिड़की से खटखटा कर प्रशांत को जगा लेगी खिड़की के
पल्ले भिड़े हुए थे कमरे में मद्धम सी रौशनी थी उसने पल्ला धीरे से खिसका कर पुकारा
सुनो जी! उसकी और प्रशांत की आँखे मिली और उस तीसरी स्त्री से जो उस समय प्रशांत
के साथ थी । वह भागते हुए कमरे तक लौट आई थी आंगन में जाकर उल्टियां करती रही देर
तक । और फिर जाने क्या क्या हुआ सताईसा पूजा गया बहुत बड़ा भोज हुआ नाच गाना ननदों
ने बुआओ ने जी भर के नेग लिया उसे कुछ नहीं याद सब सिनेमा सा चल रहा था सब चले गए
थे बस माँ बाबु जी भाई भाभी के अलावा कोई नहीं बचा था घर में प्रशांत अपराधी की
तरह सर झुकाए अपने कमरे में लौट आये थे उससे आँखे नहीं मिला पा रहे थे । वह फिर से
पहले जैसी हो गयी थी अच्छी बहू अच्छी पत्नी चुपचाप काम रसोई से लेकर बिस्तर तक
वरुण बड़ा होने लगा था उसके बचपन में खो गयी थी वह वैसी ही ठंडी जमी हुई । सद्गृहस्थन
औरत के पास वैसे भी देह नहीं होती उसके सेंसरी ऑर्गन काम न ही करें तो बेहतर ही
रहता है ।वे काम करेंगे तो मुश्किल बढ़ा देंगे घर की भी और गृहस्थी की भी । प्रशांत
इस औरत से उस औरत भटकते रहे अब शर्म नहीं आती थी उन्हें उसे ठंडी औरत कह हर बार
पकडे जाने पर बचा लेते थे खुद को । वह जमती गयी पत्थर होती गयी ठंडी होती गयी ।
कभी कोई ऊष्मा पिघलाती भी थी तो वह था वरुण । छोटा गदबदा सा वरुण वैसे ही दूर से
उँगलियाँ देख खिलखिलाने लगता था जैसे वो बचपन में हंसती थी वरुण अपनी नन्ही
उँगलियों से उसे गुदगुदाने की कोशिस करता हर बार हार कर मायूस हो जाता उस मासूम ने
कोशिश जारी रखी गुदगुदाने की खुश रखने वो न हंसती फिर भी हर बार खुश होने पर
गुदगुदाता उसे। और हर वही बार कौतुहल उसकी आँखों में होता माँ तुम्हारे सेंसरी
ऑर्गन काम क्यूँ नहीं करते भगवान् जी ने लोकल लगा दिया है क्या बरामदे में कोई चढ़
रहा था शायद वरुण जिम से वापस आ रहा था उसने अपने कमर के इर्द गिर्द उँगलियाँ
घुमाई "तुम्हे गुदगुदी लग रही माँ देखो तुम हंस रही तुम्हारे सेंसरी ऑर्गन
ठीक हो गए हैं" उसने फिर से सुना बार बार सुना वो वरुण को स्नेह से चूमकर
शुक्रिया कहना चाह रही थी । बचपन में पढ़ी परीकथाओ में राजकुमारियां कैद हो जाती थी
किसी ऊंचे किले में । सो जाती थी सोलह साला लम्बी नींद। जब उन्हें जगाने की तमाम
कोशिशें बेकार जाती तो नजूमी कहता "जब कभी सफेद घोड़े पर सवार कोई राजकुमार
आएगा उसे इस सोई हुई राजकुमारी से मोहब्बत हो जाएगी तभी टूटेगी यह सोलह साला
नींद"
राक्षस कैद
कर देता हैं राजकुमारी को संवेग शून्यता के ऊंचे प्रस्तर दुर्ग में सो जाती
राजकुमारी की सारी इंद्रियां वह जिंदा लाश हो जाती । लोग हंसते लाश सी देह लिए सोई
पड़ी इस राजकुमारी से किसे प्रेम होगा भला मगर एक रोज सचमुच आ जाता है एक राजकुमार
उसे सोई हुई राजकुमारी से प्रेम हो जाता है । वह मुग्ध हो जाता है सोई देह वाली
राजकुमारी पर । राजकुमारी की लम्बी नीद टूटती है चटक जाते हैं पत्थरों के किले
राजकुमारी राजकुमार के साथ सफेद घोड़े पर सवार उड़ चलती है जागी हुई देह और मन से
जागी हुई दुनिया की ओर ।
ताऊ जी, दैत्य ,सोलह साला नीदं ,गुदगुदी वरुण पत्थर का किला और श्वेत अश्व पर सवार राजकुमार सब गडमगड हो
रहे थे । "डी कोड हो रही थी एक परी कथा" ।
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मृदुला शुक्ल कवि, कथाकार और पेशे से शिक्षक हैं।
उनका एक कविता संग्रह ‘उम्मीदों के पाँव भारी हैं’ प्रकाशित है और एक कहानी संग्रह
‘दातून’ शीघ्र प्रकाश्य है। सरकारी स्कूल के बच्चों के साथ वह 'कलम-कूची' नाम से
अखबार निकालती हैं और उन्हें रचनात्मक लेखन का प्रशिक्षण देती हैं। कहानी और कविता
के लिए कुछ पुरस्कार।